अंधी दादी की चुत चुदाई

नमस्ते दोस्तों मै अपनी तारीफ़ में क्या कहूं। अंधी दादी की चुत चुदाई करने वाला मुझ जैसा कमीना आपको पूरे मोहल्ले में नही मिलेगा। वैसे मेरा नाम कुंदन है मैं अब 23 साल का हो चुका हूं और अभी सरकारी कॉलेज में M.COM की पढ़ाई कर रहा हूं।

अंधी दादी की चुत चुदाई

बात ऐसे शुरू हुई की मेरे मां पिता और मेरा छोटा भाई मेरे मामा के लड़के की शादी में जानें वाले थे। मेरा भी उनके साथ जानें का मन कर रहा था। मैंने मामा के घर जानें की जिद्द भी की लेकिन मेरे पापा ने साफ मना कर दिया। मुझे मेरी अंधी दादी के साथ घर में छोड़ दिया। मुझे चेतावनी भी दी की हमारे पीछे अपनी दादी का ख्याल रखना।

लाख कोशिश के बाद भी मैं अपने मां पापा और भाई के साथ मामा के घर नही जा सका। जिसपर मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था। मुझे अपनी दादी पर भी गुस्सा आ रहा था की मैं इनके वजह से ही अपने मामा के घर नही जा सका।

उस दिन रात को मेरे मां , पापा और छोटा भाई मामा के घर के लिए निकल गए। मैं भी उन्हे स्टेंशन तक छोड़कर घर वापस आ गया। उस वक्त तक मेरे मन में गुस्सा था। मैं चुपचाप बैठकर टीवी देख रहा था। तभी मेरी दादी ने अपने कमरे में से आवाज लगाई। कुंदन आ गया है क्या तू? मैंने एक दो बार उनकी आवाज नजरंदाज की गुस्से की वजह से।

जब उन्होंने फिर पूछा कुंदन आ गया है क्या तू? तो मैंने झिलाते हुए कहा हां आ गया हूं। तो उन्होंने फिर मुझे आवाज लगाई जरा इधर आ । मैं मन में बड़बड़ाता हुआ उनके कमरे में गया और झल्लाते हुए पूछा क्या है? उन्होंने कहा जरा मुझे बाथरूम तक छोड़ दे। मैं उनको पकड़कर बाथरूम के अंदर ले गया और खुद बाहर आकर उनका इंतजार करने लगा।

उस वक्त तक मेरे मन में दादी के लिए कोई गंदे या ऐसे वैसे ख्याल नही थे। मेरे मन में बस उनके वजह से मामा के घर न जा पाने का गुस्सा था। कुछ देर बाद जब दादी बाथरूम से बाहर आई तो मैं उन्हें उनके कमरे में छोड़कर वापस आकर टीवी देखने लगा। मैं उस वक्त सोंच ही रहा था की दादी 65 वर्ष की होकर भी शरीर से इतनी हट्टी कट्टी कैसे है और इनकी आंखे खराब क्यों हो गई है।

दोस्तों मेरी दादी हट्टी कट्टी और उनका बदन एकदम भरपुरा है। उनकी हाईट 5 फुट 2 इंच के आस पास है और उनकी गांड़ उभरी हुई किसी पहाड़ के उभार जैसी थी। शायद उनकी गांड़ मेरी कमर की दोगुनी थी। उनकी चूचियां भी ढीली ढाली ही सही लेकिन बहुत बड़ी बड़ी थी।

अगले दिन सुबह करीब 6 बजे मेरी आंख खुली। मेरा लंड सुबह रोज की तरह खड़ा हुआ पड़ा था। मैंने मस्ती में अपने पैंट में हाथ डालकर अपने लंड से खेल रहा था। तभी दादी ने आवाज देकर मुझे बुलाया। मैं अपने खड़े लंड को जैसे तैसे पैंट में डालकर उनके कमरे तक गया। अभी भी मेरा लंड पैंट में तंबू तानकर खड़ा था। क्योंकि दादी ने बीच में ही मुझे बुला लिया।

जैसे ही मैं उनके कमरे में गया उन्होंने कहा आ गया तू? मैंने कहा हां दादी बोलो। तो उन्होंने कहा चल मुझे बाथरुम तक छोड़ दे। उनके मुंह से बाथरुम का नाम सुनकर पता नही मुझे क्या हुआ। तूरंत मैं समझ गया की दादी को पिसाब करना होगा और मेरे मन में तूरंत चुत और चुत से निकलती पेशाब की छवि बनने लगी।

मेरा लंड खड़ा था। शायद इसलिए उस वक्त मेरे मन में तूरंत वासना जाग गई। अब मुझे मेरी दादी पर मेरी नीयत खराब हो गई और ये सब कुछ सेकेंड में हो गया। दादी के बारे में सोचकर मेरे लंड और टाईट हो गया। तभी मेरे मन में एक गंदा ख्याल आया की अभी घर में कोई है नहीं और मेरी दादी अंधी है यही अच्छा मौका है। अंधी दादी की चुत देखने का।

मैंने दादी को पकड़ा और सहारा देते हुए उन्हें बाथरूम के अंदर तक ले गया। फिर मैंने अपने पैर बजाए और बाथरूम से निकलने का नाटक करते हुए दरवाज़े को हल्का बंद किया दरवाजा बंद होने की आवाज सुनकर दादी को लगा की मैं बाथरूम से बाहर जा चुका हूं।तभी दादी ने अपनी साड़ी को नीचे से पकड़कर उपर उठाने लगी। मैं उनके पीछे खड़ा सब देख रहा था।

दादी ने अपनी साड़ी को अपनी कमर के उपर तक उठा लिया। मुझे उनकी नंगी बड़ी और चर्बी से भरी गेहूए रंग की गांड़ दिख गई। उनकी गांड़ देखकर मेरे हाथ पाव जम गए। मेरे होठों में कपकपी होने लगी। मेरा लंड अब तनकर मेरी पैंट में ही सीधा हो गया। उस वक्त मुझे समझ नहीं आ रहा था की मैं क्या करूं। मेरे मन में बहुत ज्यादा खुशी थी साथ ही थोड़ा डर भी था।

तभी दादी अपनी साड़ी को संभालती हुई पेशाब करने बैठ गई। दादी के बैठते ही उनकी गांड़ और चौड़ी हो गई। मैं दादी की गांड़ की बीच की गहराई में खो गया था। तभी फर्श पर पेशाब के तेज धार की आवाज से मेरा ध्यान टूट गया। अब मुझसे दादी की चुत देखे बिना रहा नही जा रहा था।

मैं बिना आवाज किए बाथरूम की फर्श पर दादी की गांड़ के पीछे एक फीट दूर अपना सर फर्श पर सटाकर दादी की चुत की तरफ झांकने लगा।  पहली बार मुझे दादी की चुत का दर्शन मिल रहा था। दादी की चुत के दोनों फुले हुए पट खुले हुए थे। जिसके अंदर  गुलाबी चमड़ी साफ दिखाईं दे रही थी। साथ ही उनकी चुत से निकलते पेशाब की भीनी भीनी खुशबू मुझे उत्तेजित कर रही थी।

मैं दादी की चुत को अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देना चाहता था। मैं डर रहा था की दादी उठ न जाए और अपनी चुत को ढक न ले। लेकिन उससे पहले ही मेरी उत्तेजना इतनी बढ़ गई की अपने आप ही मेरा लंड पैंट में ही झड़ने लगा। उसी वक्त दादी भी उठकर खड़ी हो गई।

मैं जल्दी से बाथरूम से बाहर आ गया और बाहर उनका इंतज़ार करने का नाटक करने लगा। फिर मैंने उन्हें उनके कमरे तक छोड़ा और अपने कमरे में आकर अपनी पैंट में से अपना लंड निकालकर पोंछकर साफ कर लिया।

करीब 9 बजे मैंने खुद और दादी के लिए नाश्ता परोसा और हम लोगो ने साथ नाश्ता किया। दादी ने कहा कुंदन मैं सोच रही थी की नहा लूं। तू मुझे बाथरुम तक पहुंचा दे और मेरे कपड़े भी दे दे। मैंने दादी को कपड़ों के साथ बाथरूम में ले गया। मेरे मन में तो लड्डू फूट रहे थे।

मैंने दादी को बाथरूम में छोड़कर फिर से पैर बजाकर बाहर निकलने का नाटक किया साथ ही दरवाज़े को बंद करके बाहर निकलने का नाटक किया। जब दादी को विश्वास हो गया की मैं बाहर जा चुका हूं। तो उन्होंने अपने कपड़े उतारने शुरु कर दिए।

सबसे पहले दादी ने अपनी साड़ी का पल्लू नीचे गिराया। जिससे उनकी बड़ी बड़ी चूचियां ब्लाउज़ के होते हुए भी उपर से आधी दिखने लगीं। दादी की दोनों चूचियों के बीच की हसीन वादी को देखते ही मेरे लंड ने सलामी दे दी। मैं अपनी पैंट में हाथ डालकर अपना लंड मसलने लगा।

तभी दादी ने अपनी ब्लाउस खोलनी शुरु की और देखते ही उन्होंने अपनी पूरी ब्लाउस निकाल दी। मैं दादी की चुचियों को देखकर इतना उत्सुक हो गया की मैंने तुरंत ही अपनी पैंट और चड्डी उतार दी और नीचे से पूरा नंगा हो गया।

मन कर रहा था की मैं अभी अपने हाथ से दादी की दोनों चुचियों को पकड़ लूं। मैं दादी की चुचियों को अपने मुंह में भरकर जीभर उनको पीना चाहता था। उनकी लंबी काली निप्पलों को चूसना चाहता था। लेकिन डर की वजह से मैं एक कोने में ही जमा रहा।

अब मैं बस दादी की साड़ी और पेटीकोट उतरने का इंतज़ार कर रहा था। मुझे उनकी चुत देखने की चूल थी। दादी ने अपनी साड़ी उतार दी। अब वो सिर्फ पेटिकोट में खड़ी थी। मैं बेसब्री से उनकी चुत दिखने का इंतज़ार कर रहा था। लेकिन दादी अपनी पीठ और बाजू खुजाने में व्यस्त थी।

उस वक्त ऐसा लग रहा था की दादी शायद मुझे चिड़ा रही हो। लेकिन मैंने उनकी पेटिकोट के फांके जहां पेटिकोट के डोरी के दोनों छोर मिलते वहां से उनकी दोनों टांगों के बीच झांकने लगा। लेकिन असली खजाना उनके चर्बी वाले पेट के नीचे छुपा हुआ था।

फिर जैसे ही दादी ने पेटिकोट की डोरी को हाथ लगाया। मेरे अंदर के अजीब सी बेचैनी जागने लगी। मेरा लंड पानी छोड़ने लग गया। फिर दादी ने अपनी पेटिकोट की डोर खोल दी और अपनी पेटिकोट उतार दी। अब दादी बिलकुल नंगी मेरे सामने खड़ी थी।

मैं उनकी चुत देखकर एकदम सन्न हो चुका था। एक तरफ तो चुत देखने की खुशी और एक तरफ पकड़े जाने का डर। लेकिन मैं वही जमा रहा और हल्के हल्के हाथों से अपने लंड की चमड़ी को आगे पीछे सरकाता रहा। अब दादी अपने शरीर पर पानी डालने लगी। उसके बाद वो एक एक करके अपने सभी अंगों पर साबुन मलने लगी।

उन्होंने अच्छी तरह से अपने बदन पर साबुन लगाया। फिर वो जमीन पर बैठ गई और बैठकर अपनी टांगों में साबुन लगाने लगी। उनके बैठने से मुझे उनकी चुत साफ साफ दिखाई देने लगी। मैं उनकी वो गुलाबी चुत देखकर एकदम सकपका सा गया। मैं तेज़ी से अपने लंड पर हाथ चलाने लगा। मैं एक टक दादी की चुत को घूर रहा था और एक हाथ से अपने लंड की चमड़ी को तेज़ी से आगे पीछे कर रह था।

तभी दादी अपनी जांघों पर साबुन रगड़ते हुए। साबुन को अपनी अपनी चुत पर मलने लगी। जब दादी अपनी चुत पर साबुन मल रही थी। तब वो किसी और अंदाज में अपनी चुत रगड़ रही थी। शायद दादी अपनी चुत सहलाते हुए मजे ले रही थी। ये देख मेरे अंदर का सैतान जाग गया। अब मैं दादी को चोदने के फिराक में आ गया।

तभी मैंने देखा दादी के हाथ से साबुन छूटकर नीचे गिर गया और उन्होंने अपनी दो उंगलियों को अपनी चुत में डाल लिया और उंगली को अपनी चुत के अंदर बाहर करती हुई। अपना मुंह खोले हुए गहरी गहरी सांसें लेने लगी। वो देखकर पता नही उस वक्त मुझे इतनी खुशी हुई की मैं क्या बताऊं।

मेरा 8 इंच लंबा लंड मेरे धैर्य से बाहर हो रहा था। दादी की टांगें उस वक्त फैली हुई थी। मैं बिना आवाज किए उनकी टांगों के बीच अपने घुटनों के बल बैठ गया। मैंने अपना लंड एक हाथ से पकड़ लिया। फिर मैंने अपने दूसरे हाथ से दादी की चुत में घुसी उंगलियों को एक झटके में उनकी चुत से खींचकर बाहर निकाल दिया।

दादी एक दम से चौंक गई। लेकिन मैंने तुरंत अपने मोटे 8 इंच लंबे लंड को दादी की चुत में धकेल दिया। दादी की एकदम से तेज़ चीख निकल गई। मैंने तुरंत उनकी कमर पकड़ ली। मैंने तेज तेज धक्के लगाने शुरू कर दिए। दादी अचंभित थी। आखिर उनकी चुत में इतना मोटा लंड ठेलने वाला है कौन?

दादी कुछ समझ पाती इससे पहले मैंने उनकी चुत में 10 – 12 धक्के मार दिए थे। मेरे धक्कों से दादी आन्ह्ह्ह्… आन्ह्ह्हह… माआहह माआह… करती हुई बिलकने लगी। फिर उन्होंने अपने हाथों से मेरे चेहरे को छूना शुरू किया और वो तूरंत मुझे पहचान गई।

मुझे पहचानते ही बोली कुंदन तू ये क्या कर रहा है हरामी के जने?? मैं तेरी दादी हूं। वो कहते कहते ही मुझे जोर से पीछे धकेलकर उठकर खड़ी होती है। जिससे मेरा लंड ठप.. की आवाज के साथ उनकी चुत से बाहर निकल जाता है और मैं पीछे गिर जाता हूं। दादी बाहर भागना चाहती थी।

लेकिन मैं उनपर पीछे से झपट पड़ता हूं और उनको पकड़ लेता हूं। वो मुझपर जोर दिखाने लगती है। मैं फिर भी उनको नही छोड़ता हूं। अचानक हम दोनों का बैलेंस बिगड़ता है और हमदोनों फिसलकर गिर जाते है। दादी उठकर भागना चाहती थी। लेकिन मैं उनके ऊपर चढ़ जाता हूं।

अब हम दोनों के बीच कुस्ती होने लगती है। मैं दादी की दोनों टांगों को फैलाने की कोशिश करता हूं और वो बार बार अपनी टांगें आपस में चिपका ले रही थी। आख़िर में मैंने उनकी एक टांग पकड़कर उपर की और मैं उनकी दोनों टांगों के बीच अपने दोनों टांग पसारे उनकी क़मर पर अपनी कमर चढ़ाकर उनपर लेट गया।

मैंने दादी के दोनों हाथ पकड़ रखे थे। फिर मैंने अपने लंड को दादी की चुत पर लगा और एक ही धक्के में अपना गोटा लंड उनकी चुत में डाल दिया। दादी की कराह निकली आआह्ह्ह.. ओअ अ… माआह… मैं दादी की चुत में शॉर्ट पर शॉर्ट मारने लगा। कुछ ही देर में दादी की चुत अंदर से मेरे लंड के माल से लसफसा गई।

मैं एक बार दादी की चुत में ही झड़ चुका था। लेकिन अभी भी मेरे लंड और मेरे मन को शांति नही मिली। अभी भी मेरा लंड खड़ा था और दादी की गरम चुत मेरे लंड में और जान भर रही थी। मैं दुबारा दादी की चुत में अपने लंड की बौछार करने लगा। मैं एक जवान मर्द हूं और मैं अपनी पूरी ताकत के साथ दादी की चुत मार रहा था।

इस बार भी दादी तेज आवाजों में कराह रही थी आआहह… ओह्ह्ह… बस रे…. बस कर आह्ह्ह… माआहः…. मैंने अपनी रफ़्तार थोड़ी धीमी की और अब आराम आराम से दादी की चुत में अपना लंड अंदर बाहर करने लगा। मैं अब दादी की चुत में अपने लंड का धक्का धीमे रफ्तार से करने लगा।

दादी की आवाज बदल चुकी थी अब वो आह.. आह.. ओह… ओ ओ.. करती हुई। मेरे बालों को सहला रही थी। तभी मैंने दादी की एक चूंची पकड़ी और उनके निप्पल को अपने मुंह में डालकर चूसने लगा। अब वो मेरी पीठ सहलाने लगी। मैं और उत्तेजित हो गया और दादी की चुत में गहराई तक अपने लंड को पहुंचाने लगा।

मुझे भी अब मजा आ रहा था। तभी दादी का हाथ मेरी गांड पर आ गया। कुछ देर उन्होंने मेरी गांड़ सहलाई और हल्के हल्के वो मेरी गांड़ को अपनी चुत पर भी दबा रही थी। फिर उन्होंने मेरी दोनों गोटियों को पकड़ लिया। वो मेरी गोटियों को अपनी उंगलियों से गुदगुदाने लगी। जिससे मेरा लंड भरभराकर उनकी चुत में ही झड़ गया।

मैं हांफता हुआ उनके उपर से उठकर बैठ गया। मैं समझ चुका था की अब दादी की तरफ से मेरे लिए ग्रीन सिग्नल है। उसके बाद मैं वहां से चला गया और दादी भी नहाकर बाहर आ गई। उसी रात आधी रात को मैं दादी के कमरे में गया। मैंने चुपके से उनकी साड़ी ऊपर उठाई और उनकी टांगें फैला दी।

फिर मैंने अपना लंड उनकी चुत की छेद पर रखा और एक ही धक्के में अपना लंड उनकी चुत के भीतर उतार दिया। जिससे दादी की नींद खुल गई। हम दोनों ने चुदाई का खेल शुरू कर दिया। मुझे दादी अब  उनको चोदने से मना नहीं करती। लेकिन मुझे उनको चौकना और उसके बाद उनकी चुत को चोदना बहुत मजा देता है। तो इस तरह मैंने अपनी अंधी दादी की चुत चुदाई की।

उम्मीद है ये कहानी आप सभी को पसंद आई होगी।

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