माँ की गोरी गाँड़ ने नियत खराब की।-2

पहला भाग: माँ की गोरी गाँड़ ने नियत खराब की।-1

मैं माँ के कमरे से उनके कमरे का दरवाजा सटाते हुए अपने कमरे में आ गया। और लेटकर अपने पैंट में हाथ डालकर अपने लंड को मसलते हुए माँ की गाँड़ और चुत को अपनी आंखें बंद करके चोदने के सपने देखने लगा। माँ के चुदाई के सपने देखते हुए मेरा लंड गरम रॉड की तरह चुत का प्यासा बन चुका था।

झट से मेरी आँखें खुली और मन मे आया कि माँ को देख लू कही उन्हें किसी चीज की ज़रूरत तो नही। फिर मैंने सोचा कि अगर माँ सोई होंगी। तो दरवाज़े की आवाज से उठ जाएंगी। तब मेरी नज़र वेंटिलेटर पर पड़ी जो मेरे कमरे और माँ के कमरे की बीच की दीवार में थी। मैंने सोचा कि चलो यही से देख लेता हूँ।

मैं टेबल की मदत से वेंटिलेटर तक पहुंच गया। और जब माँ के कमरे में झाँककर देखा तो मुझे मेरी आँखों पर विश्वास नही हुआ। मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी। मुझे कभी लगा ही नही की मेरी माँ ऐसा कर सकती है। मैंने देखा माँ पीठ के बल लेटकर अपनी जाँघे फैलाकर छोटे से पावडर के गोल डब्बे को अपनी चुत में डालकर अपनी चुत को चोद रही थीं।

उस डब्बे की मोटाई मेरे लंड जितनी 3″ कि होगी। वो सटासट डब्बे को अपनी चुत में अंदर बाहर कर रही थी। बीच -बीच मे वो अपने चुत में डब्बे को छोड़ कर अपनी चुचियों को अपने दाहिने हाथ से मसलती थी। करीब 20 मिनट माँ ने अपनी चुत को डब्बे से चोदा फिर शायद वो झड़ गयी। माँ ने अपनी दोनों टाँगो को आपस मे चिपका लिया। और डब्बे को अपनी चुत में ही लेकर सो गई।

मेरा तो मन किया कि अभी माँ के हाथ से डब्बा छीन लू और अपना लंड पकड़ा कर कहु की लो माँ इससे जितनी मर्ज़ी चुदवा लो अपनी चुत को पर वो माँ थी। मैं सीधे ऐसे नही बोल सकता था। कही माँ बुरा मान गयी तो पापा को बता देगी। इसी डर से मैं चुप रह।

उसी दिन रात को जब मैं खाना खा कर माँ के रूम से सोने के लिए अपने कमरे में आने लगा। तब माँ ने कहा रवि तू भी यही सो जा ना। बिस्तर बड़ा है। हम दोंनो आराम से यही सो जाएंगे। मैंने भी कहा ठीक है। मैं भी माँ के बगल में उनके बिस्तर पर सो गया। माँ को दवा खाने के बाद तुरंत नींद आ गयी। पर मैं करवटे बदलता रहा।

एक तो मुझे लाइट ऑफ करके सोने की आदत थी। और माँ को लाइट जला के। करवट बदलते-बदलते रात के 12 बज चुके थे। मैंने करवट बदल कर अपना चेहरा माँ की पीठ की तरफ कर दिया। और माँ की मोटी कमर को देखने लगा। मैं माँ के पूरे बदन को नापने लगा। माँ की पेटीकोट इतनी पतली थी। कि लाइट के रोशनी से आर पार दिख रहा था।

मैंने सोने का नाटक करते हुए अपना एक हाथ माँ के पेट पर रख दिया। और कुछ देर इंतेज़ार किया जब माँ ने कोई हरकत नही दिखाई तो मैंने अपना हाथ सरका कर पेट के निचले हिस्से पर ले गया। कुछ देर हाथ वैसे ही और वहीं रखा। माँ की झाँटे मेरी उँगलियों पे महसूस होने लगी थी।

फिर मैंने अपने हाथ की एक उंगली को माँ की जांघो के बीच घुसाया तो मेरी उंगली उनकी चुत के दाने के ऊपर से होती हुई माँ की चुत के होंठो पर रगड़कर रुक गयी। मैंने उंगली को उनकी चुत की छेद तक पहुँचाने की कोशिश की पर माँ का पेटिकोट टाइट हो चुका था। उंगली आगे बढ़ी ही नही।

फिर मैंने अपना हाथ फिर से माँ की कमर पर रखा। और पेटीकोट की डोरी बाँधने वाली जगह पर जो फांक रहता है। वहा हाथ को सरकता हुआ ले गया। मैंने थोड़ी देर इंतेज़ार किया। डोरी बांधने वाली जगह पर जो पेटीकोट का जो फांका रहता है। वह अपना हाथ जमा दिया। वहीँ से धीरे धीरे अपना हाथ पेटीकोट के अंदर सरकाने लगा।

जैसे ही मैंने अपना हाथ अंदर घुसाया मेरी सांसे तेज़ होने लगी। मैं अपना हाथ थोड़ा और अंदर ले गया। अब मुझे माँ की नाभि महसूस होने लगी। धीरे से मैंने माँ की नाभि में भी अपनी उंगली डाल दी। बहुत गहरी नाभि थी माँ की मैंने अपने हाथ को माँ की नाभि के नीचे बढ़ाया। अब माँ की चुत की घुंघराली झाँटे मेरी उँगलियों से अड़ने लगी। मैंने अपनी एक उंगली को नीचे बढ़ाया।

मेरी उंगली माँ के चुत के दाने को छूने लगी। मैंने धीरे-धीरे करके अपनी उंगली माँ की चुत की छेद तक पहुँचा दी। मेरा लंड भी खड़ा होकर चुदाई का मौका देख रहा था। फिर मैं अपनी उंगली को माँ की चुत के होंठो के बीच रगड़ते हुए अपनी उंगली को माँ की चुत में घुसा दिया। क्या गरम चुत थी। मज़ा आ गया….. ऐसी रसदार चुत थी मन कर रहा था कि अपने होटों को माँ की चुत पर रख कर सारा रस पी जाऊ।

जब मैंने अपनी उंगली को चुत से बाहर निकाल कर देखा तो फिर से उसमें चुत का गाढ़ा रस लगा हुआ था। मैंने अपनी पैंट नीचे करके घुटनो तक करदी। और चुत के रस को अपने खड़े लंड के सुपडे पर मल दिया। फिर मैंने माँ के जांघो से धीरे-धीरे करके पेटीकोट को पीछे से उनकी गाँड़ के ऊपर कर दिया।

माँ की गोरी बड़ी गाँड़ मेरे लंड के सामने थी। पर मुझे डर भी बहुत लग रहा था। फिर भी मैं अपने लंड को माँ की गाँड़ के दोनों चूतड़ों पर दबाने लगा। माँ की चूतड़ों पर लंड दबाने पर ऐसा लग रहा था कि कोई रुई से भरे मुलायम तकिया हो फिर मैंने अपना लंड माँ की गाँड़ के दोनों हिस्सों के बीच डाल दिया।

और अपने हाथों से लंड को माँ के चूतड़ों के बीच ऊपर नीचे रगड़ने लगा। माँ की गाँड़ की छेद पर भी लंड फेरने लगा। माँ के रूम में पड़ी वैसलिन की डब्बे में से वैसलिन को अपने लंड पर मल दिया। अब मेरा लंड चिकना हो चुका था। फिर मैं माँ की गाँड़ को अपने हाथ से फैला कर माँ की गाँड़ की छेद पर ढेर सारा थूक लगा दिया।

और आराम से माँ की गाँड़ से लंड सटाकर लेट गया। फिर मैंने अपने दाहिने हाथ से माँ की गाँड़ के एक हिस्से को ऊपर उठाकर थोड़ा फैलाकर गाँड़ की छेद को खोल दिया। और अपनी कमर हिलाकर माँ की गाँड़ की छेद पर अपना लंड सेट करने लगा। थोड़ी कोशिश के बाद लंड गाँड़ की छेद पर जम गया।

फिर मैंने लंड पर थोड़ा ज़ोर डालते हुए अपनी कमर को माँ की गाँड़ से चिपका कर माँ की पेट को पकड़ लिया। वैसलिन की वजह से मेरा लंड फिसल कर आधा माँ की गाँड़ में घुस गया।क्या बताऊँ दोस्तों पहली बार मैंने किसी औरत को चोदा था। उस वक़्त वाकई जन्नत महसूस हो रहा था। मैं अपनी कमर को थोड़ा पीछे खींचकर थोड़ा ज़ोर से धक्का देकर अपनी कमर को माँ की गाँड़ से चिपका दिया।

मेरे लंड में दर्द होने लगा। माँ की गाँड़ में भी लंड सही से नही जा रहा था। और जबरदस्ती गाँड़ में लंड घुसाने शायद माँ को भी दर्द होता और वो जाग जाती इसलिये मैंने लंड को माँ की गाँड़ से बाहर निकाल लिया। और उनके चूतड़ों के बीच मे लंड रगड़ने लगा। अचानक लंड नीचे की ओर फिसला और माँ की चुत में घुस गया। जैसे ही लंड माँ की चुत में घुसा लंड ने अपना पानी चुत में ही झाड़ दिया।

मैंने झट से लंड को माँ की चुत से बाहर निकाल लिया। फिर एक बार मेरे लंड ने माँ की जांघो के बीच अपना गाढ़ा माल फैला दिया। माँ की चुत और जांघ पूरे वीर्य से ढक गए थे। मैंने देखा माँ की चुत से आहिस्ते आहिस्ते वीर्य बाहर निकल कर उनकी गाँड़ की दरार और जांघ पर फैल रहा था। मैंने तुरत माँ की पेटिकोट ठीक की और वैसे ही चुपचाप सो गया।

अगली सुबह जब मैं उठा तो माँ सो रही थी। मैं उठकर बॉथरूम में फ्रेश होने चला गया। फ्रेश होते होते मेरी नज़र मेरे लंड पर गयी। मेरा लंड पूरा मेरी झाँटो से ढका हुआ था। पता नही मेरे मन मे क्या आया कि मैंने वही रेज़र से अपने झाँटो को छील दिया। अब मेरा मोटा और बड़ा लंड सही से दिखने लगा। मेरा लंड चिकना हो चुका था।

जब मैं वापस माँ के कमरे में जा रहा था। तो मैं अचानक दरवाजे के पास ही रुक गया। देखा तो माँ अपनी पेटिकोट उठाये अपनी टाँगे फैलाकर अपने चुत और जांघो पर फैले वीर्य को अचंभित होकर देख रही थीं। मैं डर गया कि कही माँ को पता न लग गया हो।

थोड़ी देर बाद मैंने कमरे के बाहर से ही माँ को आवाज लगाई। माँ आपको बॉथरूम जाना है क्या? माँ ने कहा हां तो मैं अंदर उनके कमरे में गया। देखा माँ ने अपनी पेटीकोट ठीक कर ली थी। और लेटी हुई थी। मैं उनको बॉथरूम ले गया। माँ फ्रेश हो गयी। और नहाने के लिए कहने लगी।

मैंने फिर से माँ को बॉथरूम वाली टेबल पर बैठा दिया। और उनकी ब्लाउज खोलने लगा। ब्लाउज खोलते ही उनकी बड़ी चुचियाँ बाहर फ़ुटबॉल की तरह लटकने लगी। मेरा अंदर चुदाई का कीड़ा जाग गया। पर मैंने खुद को संभाला और माँ की पेटीकोट भी उतार दी। अब माँ बिल्कुल नंगी मेरे सामने बैठी थी।

मैं छिपी नज़रो से माँ के नंगे बदन को घूरने लगा। उनके जांघों के बीच दबी हुई चुत के काले काले बाल साफ दिख रहे थे। मेरे लंड ने भी मेरी पैंट में इशारा करना शुरू कर दिया। पर माँ को पता नही चल रहा था। मैं माँ को नहलाते हुए पैरों के पास बैठकर उनकी टाँगो पर साबुन मलने लगा। जब मैंने माँ की जांघो पर साबुन मलने लगा तब माँ ने अपनी जाँघे फैलाकर खोल दिया।

मेरा चेहरा उनकी चुत से एक बित्ते की दूरी पर था। मेरी साँस फूल रही थी। पर मैंने उनकी चुत को बिना छुए उनके पेट के निचले हिस्से पर साबुन मल रहा था। मुझे माँ के चुत का दान दिखाई दे रहा था। फिर हाथ उनके पीछे घुमाकर उनकी गाँड़ पर साबुन मलने लगा। माँ मुझे देखे जा रही थी। पर कुछ बोल नही रही थी।

फिर मैं खड़ा होकर माँ की पीठ में साबुन मलने लगा। जिससे मेरा लंड माँ के चेहरे से बिल्कुल सामने आ गया। फिर मैंने माँ के कंधे को पकड़ कर उनकी चुचियों पर साबुन से मलने लगा। माँ की नरम चुचियाँ मेरे हाथों से दबने लगी। कभी कभी मेरी उंगलिया उनके निप्पलों से टकरा जाती।

इतने में ही माँ को पता नही क्या हुआ। माँ ने अपनी मुठी में मेरे लंड को पैंट के ऊपर से ही पकड़ लिया। जैसे ही माँ ने मेरे लंड को पैंट के ऊपर से पकड़ा मेरे हाथ से साबुन छूट गया। मैं सब कुछ छोड़ माँ को देखने लगा। माँ भी मुझे ही देख रही थी। हमदोनों बिना कुछ बोले एक दूसरे को देख रहे थे। माँ को ऐसा करते देख मैं सदमे में था।

फिर माँ मेरी पैंट उतारतीं हुई बोली तू भी अभी ही नाहा ले। इतना कहते हुए माँ ने मेरी पैंट जांघिये के साथ नीचे खींच दी। मुझे विश्वास नही हो रहा था। कि ये सब कैसे हो रहा है। मैं भी पैंट को टाँगो से निकाल कर माँ के सामने नंगा खड़ा हो गया। फिर माँ ने मग के पानी से मेरे लंड को धो दिया। और बोली तू अब जवान हो गया है। और तेरा लंड एकदम अजीब सा है। मैं माँ के मुँह से लंड शब्द सुन हैरान रह गया।

माँ मेरा लंड हाथों में लिए बोली तेरा लंड बिल्कुल बैगन जैसा है। आगे से गोल मोटा और पीछे पतला मैंने डरते हुए पूछा क्या कोई खराबी है मेरे लंड में? माँ बोली नही रे पगले एकदम मस्त है। ऐसा लंड तो बूढ़ी से बूढ़ी औरत की चुत फाड़ डालेगा। माँ मेरे लंड को अपने मुँह के पास खींचने लगी। मैं भी अपनी जोश में आ रहा था। माँ ने मेरे लंड को अपने मुँह में डाल लिया।

वो मेरे लंड को लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी। माँ के चूसने से मेरा लंड खिल गया था। वो और भी ज्यादा मोटा बड़ा हो चुका था। माँ बिलकुल पोर्न में जैसा चूसते है वैसा ही चूस रही थी। माँ ने मेरा लंड खड़ा कर तैयार कर दिया था। फिर माँ ने मुझे अपने पैरों के बीच बैठने को कहा। और अपनी चुत पर साबुन मलने को कहा। मैं जैसा जैसा माँ बोल रही थीं वैसा ही कर रहा था। साबुन मलने से उनकी झाँटे मुलायम हो चुकी थी। और माँ की चुत साबुन के झाग से भर गई थी।

फिर माँ ने मुझे रोक दिया और अपनी टाँगे और खोलकर टाँगो के बीच मुझे घुटनों के बल बैठने को कहा। फिर माँ टेबल पर बैठे ही अपनी पीठ दीवार से टिका दी। जिससे उनकी चुत थोड़ी ऊपर हो कर पूरी दिखने लगी। फिर माँ ने मेरे लंड को पकड़ा और अपनी चुत पर रगड़ने लगी। मुझे बहुत मज़ा आ रहा था। माँ भी जोश में गहरी सांसें छोड़ती हुए अहह अहह आह… करने लगी थी। पर मेरा लंड अंदर चुत में नही डाल रही थी। माँ बस लंड को अपनी चुत के दाने से नीचे छेद तक रगड़ रही थी।

मैं अपने मुँह से कहता भी कैसे की अब लंड अंदर घुसाने दो। जैसे ही माँ मेरा लंड अपनी चुत पर ऊपर से रगड़ती हुई चुत की छेद पर पहुँची। मैंने अपनी लंड को धक्का दे दिया। मेरा लंड माँ की मुठी से फिसलता हुआ उनकी चुत में घुस गया। मेरे धक्के से लंड का सूपड़ा चुत में घुस गया था। चुत में सूपड़ा घुसते ही माँ की चुत से गर्म गर्म लावा( वीर्य ) बाहर उड़कर मेरे लंड पर फैल गया। माँ की चुत से 3-4 बार चुत की फुहार निकली माँ अब सांत हो गयी थी।

माँ ने अपना हाथ मेरे लंड से हटा लिया था। मेरा लंड उनके चुत के गाढ़े सफेद पानी से ढक गया था। मैंने देखा माँ अब कुछ नही कर रही है। तब मैंने अपने लंड को धक्का दिया। लंड फिसल कर माँ की चुत में आधा घुस गया। माँ कामुक आवाज में आह आह धीरे से आआआह अहहहह धीरे बहुत मोटा है दर्द हो रहा है। अहह आहह… कर रही थी। मैं आधा लंड चुत में डाले हुए उनकी टाइट चुत में अपना घुसा हुआ लंड देख बहुत खुश हो रहा था।

फिर मैंने माँ के पेट पर अपना एक हाथ रखा और दूसरे हाथ से अपने लंड के पिछले हिस्से को पकड़ लिया। ताकि माँ की चुत में लंड सीधा अंदर जाए। अब मैं एक बार मे ही माँ की चुत में लंड घुसाने को तैयार था। मैंने अपनी कमर थोड़ी पीछे खिंची और लंड के सुपड़े के पिछले हिस्से तक लंड को माँ की चुत से बाहर किया। और ज़ोर के एक धक्के के साथ मैंने अपनी कमर माँ की चुत तक सटा दी।

मेरा लंड पूरा का पूरा एक ही झटके से माँ की चुत में पिल गया। माँ आन्हहहह ओह्ह आन्हहह हहहह बआआप रे …. मर गई… कहकर चिखने लगी। माँ की आँखों से पानी निकल रहा था। पर मैं उनकी चुचियों को अपने चेहरे से दबाते हुए माँ की दोनों निप्पलों को पीने लगा। उनके चूचे पीते हुए मैंने दो तीन धक्के उनकी चुत में धकेल दिए। मेरा लंड उनकी चुत फाड़ता हुआ अंदर बाहर होने लगा।

फिर मैंने माँ को अपनी गोद मे उठाया और अपना लंड उनकी चुत में डाले उनके बेडरूम में ले गया। और ऊपर बिस्तर पर लेट गया। और उनकी टांग का ध्यान रहते हुए उनकी जांघो के बीच अपनी कमर उनकी चुत पर मारते हुए लंड को उनकी चुत में चोदने लगा। मैंने माँ को सीने से चिपका कर अपनी कमर से ज़ोर ज़ोर धक्के मार रहा था।

और अपनी होंठो से उनके होंठो को लिपलॉक करके उनको जम कर चोदने लगा। अब उनकी होठ मेरी होंठो में दबे होने से उनकी चींखें दब जा रही थी। मैं लगातार माँ की चुत में अपना लंड मारे जा रहा था। अब माँ की चुत चिकनी हो चुकी थी। माँ दुबारा झड़ गयी थी। माँ की चींखें बन्द हो चुकी थी। तो मैंने अपना मुँह उनके होंठो से हटा दिया।

मैं भी झड़ने वाला था। तो मैंने अपना लंड माँ की चुत से बाहर निकाला और फिर से अपना सुपड़े को माँ की चुत पर लगाया। और अपनी कमर को हवा में लहराते हुए अपनी कमर को उनकी कमर पर दे मारा पूरा का पूरा लंड एक बार मे ही अंदर हो गया। ऐसे ही धक्के मारता रहा करीब 15 से 20 दमदार धक्कों के बाद मेरे लंड ने अपना पानी उनकी चुत में छोड़ दिया। मैंने भी अपने धक्के धीरे कर दिए माँ अहह आन्ह आन्ह कराह रही थी।

जब तक मेरे लंड से वीर्य का आखिरी बून्द उनकी चुत में नही निकला मैं माँ की चुत चोदता रहा। फिर मैं थक कर उनके ऊपर ही लेट गया। हम दोनों पसीना पसीना हो चुके थे। माँ भी मुझे अपने सीने से चिपकाए मुझे प्यार करने लगी। मैं भी माँ के दूधो को पी रहा था। फिर एक बार हम दोनों गरम हो गए। पर माँ की चुत की हालत खराब थी। उनकी चुत के दोनों पट्टे फैले हुए थे। बीच मे उनकी चुत का छेद बड़ा होकर लाल हो चुका था।

मैं उनके ऊपर ही लेटा हुआ था। तो मैंने एक तकिया उनकी गाँड़ के नीचे लगा दिया ताकि उनकी गाँड़ की छेद थोड़ी ऊपर हो जाये। फिर मैंने अपना चिपचिपा लंड उनकी चुत से निकाला और माँ की गाँड़ में डालने की कोशिश करने लगा। पर मेरा फूल साइज का लंड माँ की गाँड़ में आसानी से नही जाता। पर मैंने ज़बरदस्ती अपने लंड को माँ की गाँड़ में घुसाने की कोशिश कर रहा था।

माँ को भी अपनी गाँड़ मरवाने की इच्छा थी। क्यों कि वो मुझे रोक नही रही थी। जब मैं अपना लंड उनकी गाँड़ की छेद के चारों ओर घुमा कर उनकी गाँड़ की छेद पर दबा रहा था। तो माँ अजीब सी सकल बना रही थी। और दर्द से इस्स इस्स म आ आ कर मेरी जांघ पर अपने नाखून गड़ा रही थी। कुछ देर कोशिश करने के बाद

मेरे लंड का अगला हिस्सा माँ की गाँड़ में घुस गया। माँ अ आआआह आह आह करती हुई चींखने लगी। मैं उनके दर्द से हुए अजीब चेहरे की तरफ देखा और बोला बस माँ एक बार दर्द सह लो। फिर आराम हो जाएगा। जब दर्द कम हुआ तो माँ का चींख बंद हो गयी। मैं उन्हें चुमने चाटने लगा। उनके दूधों को अपने होठों से दुहने लगा। अब माँ का ध्यान दर्द से हट चुका था।

मैं अपने कोहनियों के सहारे उनपर लेट गया। और उनके होंठो को लिपलॉक करके किस करने लगा। और नीचे धीरे धीरे अपने लंड को माँ की गाँड़ में सरकाने लगा। माँ भी मेरी निपल्लो को बारी बारी अपनी चिमटी से मसलने लगी। मेरा जोश सातवें आसमान पर चढ़ गया। और मैंने माँ की गाँड़ मारनी शुरू कर दी। लगातार अपनी कमर आगे पीछे करके लंड को माँ की गाँड़ में पेलने लगा।

दर्द से माँ बदहवास हो चुकी थी। और अपनी आंखें मुझपर गड़ाए अपनी गाँड़ मरवा रही थी। जब मेरी जाँघे उनकी गद्दे जैसी कोमल मखमली गाँड़ पर टकराती तो ठप ठप की एक मन मोहक आवाज लय में निकल रही थी। माँ गाँड़ मरवाते मरवाते अपनी चुत का नमकीन रस बाहर छोड़ रही थी। मैंने भी गाँड़ में लंड से ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगा। मैंने बहुत देर तक माँ की गाँड़ मारी।

हमे रोकने और देखने वाला कोई नही था। माँ की इतने दिनों की चुदाई की प्यास इतनी जल्दी बुझने वाली नही थी। मैं बिना रुके माँ की गाँड़ मारता रहा अब माँ की गाँड़ की छेद फैल कर मेरे लंड की मोटाई के हिसाब से फैल गयी थी। अंत मे माँ ने भी जोश में अपनी गाँड़ मरवाई और वीर्य गाँड़ में ही निकलवाया।

अब मैं रोज़ अपनी माँ की चुत और गाँड़ मरता हूँ। कुछ दिनों बाद माँ ठीक हो चुकी थी। उनके पैर और हाथ का प्लास्टर भी उतर चुका था। अब मैं जम कर माँ की चुदाई करता हूँ। माँ भी खूब मुझसे अपनी चुत और गाँड़ चुदवाति है। तो लंड वालो और चुत वालियों उम्मीद करता हूँ कि आपके लंड और चुत ने अब तक इस कहानी को पढ़ के पानी निकाल दिया होगा।

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