माँ की गोरी गाँड़ ने नियत ख़राब की।-1

मेरा परिवार एक छोटा सा परिवार है। जिसमें मैं , माँ और पापा ही है। मेरा नाम रवि हैै। उस वक़्त मेरी उम्र 20 साल हो चुकी थी। घर में मैं और मेरी माँ ही रहते थे। पापा फौज में है तो वो साल में 1-2 महीने ही घर पर रहते थे। पापा को जल्दी छुट्टी नही मिलती थी।

बात उस वक़्त की है। सारे देश में lockdown लगा हुआ था। जिससे सारा दिन मैं घर पर ही रहता था। उन दिनों जो मेरे और माँ के बीच हुआ उससे माँ बेटे के रिश्ते को ही हिला कर रख दिया।

एक दिन दोपहर में अचानक भारी बारिश होने लगी। दिन में भी अन्धेरा जैसा पसर गया था। माँ बारिश की वजह से छत पर से सूखे कपड़े उतारने चली गयी। माँ कपड़े लेकर सीढ़ियों से नीचे उतरने लगी अचानक माँ का पैर फिसल गया। तभी माँ की चींखने की आवाज आई।

मैं माँ की आवाज सुनकर हड़बड़ाहट में माँ के पास पहुँचा। देखा तो माँ सीढ़ियों पर गिरी पड़ी थी। मैंने उनको उठाने की कोशिश की पर वो दर्द से और ज़ोर से चींखने लगी। मैं जैसे तैसे उन्हें डॉक्टर के पास ले गया। और डॉक्टर को सारी बात बताई डॉक्टर ने माँ के पैर और हाथ का xray निकाला।

थोड़ी देर में डॉक्टर आये और कहाँ की ज़्यादा चिंता की बात नही है। बाएं पैर और हाथ मे माइनर Fracture हैै। प्लास्टर लगाना होगा। ये सुन मेरा मन उदास हो गया। मैंने पापा से सारी बातें बताई उन्होंने कहा मुझे अभी छुट्टी नही मिल सकती। और अपनी माँ का ख्याल रखना।

माँ के बाएं हाथ और पैर में प्लास्टर लग चुका था। डॉक्टर ने माँ को कंप्लीट रेस्ट करने को कहा और बॉथरूम किसी के मदत से जाने को कहा। और मुझे भी समझाया।

मैं माँ को लेकर घर आ गया। और उन्हें उनके कमरे में बिस्तर पर लिटा दिया। और मैं घर के कामो में लग गया। मैं किचन में।खाना बना रहा था। मुझे माँ के पुकारने की आवाज आई। तो मैं तुरंत माँ के कमरे में पहुँच गया। मैंने माँ से पूछा क्या हुआ आपको कुछ चाहिए। तो माँ कुछ बोली नही बस अजीब सी मुँह बनाते हुए चुप थी।

मैंने फिर पूछा माँ आपको कुछ चाहिए क्या? माँ शर्माते हुए बोली नही कुछ नही चाहिए मुझे पिसाब लगी है। हल्की आवाज में बोलती हुई माँ ने अपना चेहरा नीचे कर लिया। मैं भी सोच में पड़ गया। कि अब क्या किया जाए। मैंने माँ से कहा कि मैं बाल्टी रख देता हूँ। आप बाल्टी में कर लेना।

माँ ने कहा नही मैं बेडरूम में ये नही करूँगी। सब गंदा हो जाएगा। मैंने उनको बहुत समझाया पर माँ नही मानी। मैं उन्हें अपने कंधे का सहारा देकर बॉथरूम में ले गया। फिर सोच में पड़ गया कि माँ आखिर पिसाब करेंगी कैसे वो तो ठीक से बैठ भी नही पाएंगी। मैं उनको बाथरूम में ले गया। माँ भी बैठने की कोशिश करने लगी। पर वो बैठ नही पाई।

बैठने की कोशिश से उनके पैर पर ज़ोर पड़ रहा था। जिससे उन्हें बहुत दर्द हो रहा था। उसी दर्द के बीच उन्होंने अपनी साड़ी में ही पिसाब कर दिया। पता नही कब से माँ ने अपनी पिसाब को रोक कर रखा था। शायद शर्म से वो मुझे जब तक बर्दास्त हुआ तब तक बोली नही।

माँ ने अपनी साड़ी खराब कर ली थी। पिसाब से उनकी साड़ी गीली हो चुकी थी। और पिसाब नीचे तक बहने लगा। माँ अपनी बेबशी पर रोने लगी। मैंने माँ को समझाया कि कोई बात नही मैं सब साफ कर दूंगा आप रोइये मत। मैंने माँ को बॉथरूम में पड़ी टेबल पर बैठा दिया।

माँ ने कहा कि उन्हें अपने कपड़े चेंज करने है। मैंने कहा ठीक है। मैं झट से उनके कमरे से उनकी साड़ी लेकर बाथरूम में गया। माँ ने कहा मैं तो अपने कपड़े भी नही बदल सकती रवि तू मेरी मदत कर दे। मैंने कहा ठीक है माँ ने अपने पल्लू को नीचे गिरा दिया और अपनी साड़ी खोलने को कहा मैं भी उनके पल्लू को पकड़ कर उनकी साड़ी उतारने लगा।

माँ की गोरी गाँड़ ने नियत ख़राब की।

मैंने धीरे धीरे माँ की साड़ी को उतार दिया। अब माँ सिर्फ ब्लाउज और गीली पेटीकोट में बैठी थी। उस वक़्त उनकी बड़ी बड़ी चुचियों के बीच की सीधी गहराई मेरे नज़रों के सामने थी। पर मेरे मन मे उनके लिए उस वक्त कोई गलत विचार नही थे। जब मैंने उनकी पेटीकोट को देखा तो वो बिल्कुल गीली थी।

ऐसा लग रहा था मानो की माँ ने बहुत सारा पिसाब किया था। उनकी गीली सफेद पेटीकोट उनके जांघो पर चिपकी हुई थी। जब मेरी नज़र उनके पेटीकोट के नाड़े पर गयी तो मैंने देखा माँ ने ठीक अपनी चुत के बगल में ही पेटीकोट का नाडा बाँधा था। मैं उनकी साड़ी उतार कर उनके सामने खड़ा था।

मैं चुपचाप था। माँ भी चुपचाप थी। मैं खुद से उनकी पेटीकोट कैसे उतार दूं यही सोच रहा था। की माँ ने अपने एक हाथ से अपनी पेटीकोट की डोरी को खींचते हुए धीमी आवाज में कहा। ले इसे भी उतार दे। मैंने भी माँ को अपने कंधे का सहारा दिया। और थोड़ा ऊपर उठने को कहा फिर मैंने पीछे से उनकी गाँड़ के नीचे से उनकी पेटीकोट को खींचते हुए उतार दिया।

अब माँ नीचे से पूरी नंगी हो चुकी थी। माँ ने पेटीकोट उतरते ही अपनी चुत को अपने हाथ से ढक लिया। मैं गीले कपड़े से उनके जांघो और पैरों को पोछने लगा। माँ ने अपनी चुत तो हाथ से छुपा ली थी। मगर उनकी काली घुंघराली झाँटे उनकी हाथ की सीमा से बाहर निकल गए थे।

मैं माँ के पैर साफ करते करते उनकी झाँटो को देखे जा रहा था। मेरा चेहरा उनकी चुत के एकदम सामने था। मेरा लंड भी कड़क होने लगा था। लंड पैंट में तंबू बनाने लगा जब मैं माँ की जांघो को कपड़े से पोछ रहा था। तो माँ ने अपनी जाँघे फैला दी मैं मैंने भी अच्छे से उनकी जाँघे साफ कर दी।

अब मैं माँ को कपड़े पहनाने लगा। जैसे तैसे मैंने माँ को पेटीकोट पहना दिया। पर मुझे साड़ी बांधनी नही आती थी। और माँ को भी हिलने डुलने से तकलीफ हो रही थी। तो माँ ने कहा छोड़ दे साड़ी रहने दे वैसे भी घर मे हम दोनों के अलावा और है ही कौंन। मैंने माँ से कहा की आपको जब भी बॉथरूम जाना हो बिना बेझिझक मुझे कहियेगा।

माँ ने सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज ही पहन रखी थी। मैं उन्हें उनके कमरे में छोड़ आया। इसीतरह दिन बीत गया। रात को खाना खाने के बाद माँ ने कहा मुझे पिसाब लगी है। मैं उन्हें बॉथरूम में ले गया। फिर माँ ने अपनी पेटीकोट ऊपर करने को कहा। मैंने माँ की पेटीकोट को ऊपर कर दिया।

पेटीकोट को ऊपर उठाते ही मेरे होश उड़ गए। मेरी माँ की बड़ी सी गोरी गाँड़ मेरी आँखों के सामने थी। माँ अपनी गाँड़ मेरे सामने किये खड़ी थी। फिर मैंने उनको बैठाया। बैठते ही उनकी चुत से पानी की धार बहने लगी। धार इतनी तेज थी कि मुझे उनकी चुत से निकलते हुए पानी की ज़मीन पर टकराने की आवाज तक सुनाई दे रही थी।

माँ के बैठने पर उनकी गाँड़ और भी चौड़ी लग रही थी। मेरा तो पसीना निकल रहा था। साथ ही मेरे दोनों पैर भी कांप रहे थे। मेरा लंड माँ की गाँड़ देख होश खो बैठा था। मेरा लंड अंदर ही पानी छोड़ने लगा। माँ की चुत से पानी टपककर उनकी गाँड़ पर आने लगा। माँ ने कहा बेटा एक काम करेगा तो मैंने कहा बोलिये। माँ ने कहा बेटा पिसाब फैल गया है। जरा पानी से धो दे।

मैं उनको सहारा देते हुए उनकी गाँड़ के पीछे बैठ गया। और मग में पानी लेकर उनकी गाँड़ धोने लगा। मैं इसी बहाने उनकी गाँड़ पर इधर उधर हाथ लगाने लगा। पहली बार मैंने अपनी माँ की गाँड़ पर अपना हाथ लगाया था। मैंने गाँड़ धोने के बहाने से माँ की गाँड़ की छेद पर भी अपनी उंगलिया फेर दी। मन कर रहा था। की अभी ही माँ की गाँड़ की छेद में अपनी उंगली पेल दु।

पर कही मेरे ऐसा करने से माँ बुरा मान जाती। फिर माँ ने कहा कि बेटा थोड़ा आगे भी पानी मार दे। मैं चौंक गया और दुबारा पूछा कहाँ? तो माँ ने कहा आगे भी पानी मार दे। तो मैंने अपने हाथ मे पानी लिया। और माँ के गाँड़ के नीचे से हाथ बढ़ाकर उनकी चुत को पानी से धोने लगा। आआआह…..क्या गर्म चुत थी।

माँ की चुत धोते वक़्त उनकी झाँटे मेरी उँगलियों से खींच गयी। माँ उफ्फ्फ…की आवाज निकालते हुए बोली बेटा घ्यान से बाल खींच रहे है। मुझे विश्वास नही हो रहा था कि मैं अपनी माँ की चुत को छू रहा हूँ। वो भी उनकी मर्जी से इधर मेरा लंड मेरी पैंट से जांघो के बगल से बाहर निकल गया था। जैसे तैसे मैंने अपने लंड को अंदर किया। और माँ को उनके कमरे तक पहुँचा दिया।

उसके बाद मैं भी अपने कमरे में आकर सो गया। सुबह मेरी नींद खुली तो मैं माँ के कमरे में चला गया। देखा माँ मेरा ही इंतेज़ार कर रही थी। मैं उनको लेकर बॉथरूम में गया। माँ मेरी तरफ देख बोली बेटा पिसाब तो ठीक है। पर ये कैसे करूँ। मैंने कहा माँ आप शर्माना मत वो बोली क्या? मैंने कहा मैं आपको पकड़ कर रखूँगा। माँ बोली ठीक है मैंने कहा आप अपनी पेटिकोट उतार कर आराम से बैठ जाना।

कुछ पल सोचने के बाद माँ बोली ठीक है। पर ? मैंने कहा ज्यादा सोचो मत मैं आपका बेटा ही हूँ। वो मान गयी आखिर यही एक रास्ता था। मैंने उनकी पेटीकोट को खोल दिया। नाड़ा खोलते ही उनका पेटिकोट ज़मीन पर गिर पड़ा। माँ बिल्कुल नंगी खड़ी थी। अब मैंने उनकी झाँटो से भरी उभरी हुई चुत को भी देख लिया था। एकदम किसी जवान भाभी की गर्म चुत की तरह ही उनकी चुत थी।

मैंने उनको बैठा दिया। माँ अब हल्की हो चुकी थी। मैंने उनकी गाँड़ भी धो दी। तब माँ ने मुझसे कहा कि जब सब तूने देख ही लिया है तो अब लाज शर्म कैसी चल अब तू मुझे नहला भी दे। तो मैंने माँ को बॉथरूम वाले टेबल पर बैठा दिया। और बाल्टी में पानी भरकर उनके पास ले गया। तब मैंने माँ से कहा कि माँ आपकी ब्लाउज!! इतना सुनते ही माँ अपनी एक हाथ से ब्लाउज के बटन खोलने लगी।

माँ ने अपनी ब्लाउज के सारे बटन खोल दिये थे। अब माँ की चुचियाँ नीचे लटक रही थी।मुझे माँ की चुचियों के साइज का अंदाजा हो गया था। लगभग दो-दो किलो की रस भरी चुचियों को पीने का मन करने लगा। मैंने कभी किसी औरत के कपड़े नही उतारे थे। न ही कभी सेक्स किया था। बस ब्लू फिल्म देखता था।

मैंने अपने आप को काबू में किया और माँ की ब्लाउज को निकाल कर रख दिया। अब माँ मेरे सामने अपनी लटकती हुई। बड़ी-बड़ी चुचियों के साथ मेरे आगे बैठी थी। फिर मैंने माँ के ऊपर पानी डालने लगा उसके बाद माँ ने कहा कि रवि ज़रा साबुन भी लगा दे। मैंने झट से साबुन उठाया और माँ की नंगी गोरी पीठ पर साबुन मलने लगा।

साबुन उनके बदन पर फिसल रहा था। इधर मेरा लंड अपनी हद से फिसल रहा था। अब माँ मुझे सिर्फ एक औरत नज़र आने लगी। जब मैं साबुन उनकी पीठ पर से मलता हुआ उनकी गाँड़ पर मलने लगा। तब मेरा लंड भी मेरी माँ की गाँड़ को सलामी देता हुआ। पैंट में अपनी लार टपकाने लगा।

फिर मैंने साबुन माँ की गाँड़ पर मलना शुरू किया। क्या मखमली गद्देदार गाँड़ थी आआआह मज़ा आ रहा था। जब मैंने उनकी गाँड़ के फांकों के बीच साबुन मलने लगा तो माँ ने हल्की से गाँड़ उठा ली और थोड़ी आगे झुक कर बैठ गयी। जिससे मुझे माँ की गाँड़ की छेद भी दिखने लगी। मैंने माँ की गाँड़ की छेद पर खूब साबुन मला।

मैं माँ की गाँड़ की काली छेद में अपना लंड घुसाने को बेकरार होने लगा। पर डरता था। माँ की गाँड़ की छेद थोड़ी बड़ी थी। ये तो पक्का था कि पापा ने माँ की गाँड़ जर्रूर मारी होगी। मैं माँ की गाँड़ पर साबुन मलता हुआ उनकी गाँड़ में लंड डालने की कल्पना में खो गया। तभी माँ ने कहा रवि सिर्फ पीछे साबुन लगाएगा क्या? आगे भी लगा दे। फिर मैं माँ के कंधों से साबुन लगता हूआ उनकी चुचियों पर पहुँचा।

माँ की मुलायम चुचियाँ रुई के गेंद की तरह लग रही थी। मैं उनकी चुचियों पर साबुन लगाने लगा। साथ ही उनकी चुचियों को एक हाथ से उठा कर नीचे भी साबुन मलने लगा। साबुन लगाने के बहाने मैंने खूब देर तक उनकी चुचियों को दबाया। फिर मैं साबुन उनके पेट पर मलते हुए उनकी चुत तक पहुंच गया। माँ मुझे कुछ बोल नही रही थी। मैं भी उनके दोनों जांघो के बीच उनकी चुत पर साबुन मलने लगा।

उसी वक़्त गलती से मेरी उंगली फिसलकर माँ की चुत में घुस गई। चुत में मेरी उंगली घुसते ही माँ हिचक गयी। मैं भी डर गया और मुझे शर्मिंदगी हुई। माँ ने कुछ कह तो नही लेकिन जब मैंने अपनी उंगली को देखा तो उसपर माँ की चुत का माल लगा हुआ था। मैंने जान बूझ कर अपनी उंगली माँ को दिखाते हुए कहा कि ये क्या है? माँ ने बात टालते हुए कहा कि साबुन का झाग लग गया होगा। माँ ने मेरी उंगली पर मग कर पानी डालकर चुत के रस को साफ कर दिया।

मैं तो जानता ही था पर नाटक कर रहा था। शायद मेरे हाथों के स्पर्श से माँ की चुत ने पानी छोड़ दिया था। माँ को नहला कर उन्हें ब्लाउज और पेटीकोट पहनाकर माँ को उनके बिस्तर पर लेट कर खुद बॉथरूम में आ गया। आखिर कब तक मैं अपने लंड को खड़ा रखता। मैंने अपनी पैंट उतार कर नंगा हो गया। और माँ की खोली हुई ब्लाउज को अपने लंड से लपेटकर मुठ मारने लगा।

कुछ देर में मेरा लंड झड़ कर सांत हो गया। माँ की ब्लाउज मेरे वीर्य से भर चुकी थी। फिर मैं नाहा धोकर बाहर आया और माँ और मैं उनके कमरे में नास्ता करने लगे। नास्ता करने के बाद हम बातें करने लगे। ऐसे ही पता ही नही चला कि कब 2 बज गया। फिर मैंने माँ को दोपहर की दवा दी। और माँ को सोने के लिए कहकर उनके कमरे से बाहर निकलकर उनके कमरे का दरवाजा सटा दिया। और मैं अपने कमरे में आ गया।

इस कहानी का अगला भाग पढ़े- माँ की गोरी गाँड़ ने नियत खराब की।-2

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