रजाई में दीदी की चूदाई

मैं जानता हूं ये कहानी पढ़कर कुछ लोगों को बुरा लगेगा की मैंने अपनी दीदी के साथ ये सब कैसे कर लिया। लेकिन कुछ लोग अपना लन्ड अपनी मुट्ठी में लेकर झाड़ने को मजबूर हो जाएंगे।

रजाई में दीदी की चूदाई

मेरा नाम गौरव है और मेरी दीदी का नाम रीना है। जो मुझसे उम्र में 14 साल बड़ी हैं। वैसे मेरी उम्र 21 साल है और मैं कॉलेज में पढ़ाई करता हूं। दिखने में ठीक ठाक हूं लेकिन इस कहानी में मेरी रूप रेखा से कोई मतलब नहीं है। इसलिए बस इतना बता देता हूं।

मेरा लन्ड मेरे शरीर के रंग के विपरीत एकदम काला करलूठा और मोटा 5 इंच की गोलाई का है और लंबाई करीब 7 इंच होगी। उस रात जब सब सोने की तैयारी में थे उससे पहले मैंने जो देखा उसे देख मेरी दीदी के लिए सारी फीलिंग्स ही बदल गई।

मैं सोच में पड़ गया की इतने महीनों से वो मेरे साथ ही मेरे बिस्तर पर सो रही थी। लेकिन मैंने कभी उनके बारे में ऐसा सोचा ही नहीं था। लेकिन अब हालात बदल चुके थे। उस नजारे को देखकर मेरा लन्ड शख्त हो चुका था।

चलिए मैं आप सभी को सब कुछ शुरू से बताता हूं। मेरी एक बड़ी दीदी है जिनका नाम रीना है कुछ महीनों पहले मेरी दीदी का डायवोर्स हो चुका था। जिस कारण से वो अपना ससुराल छोड़कर अपने छोटे से बेटे के साथ घर आ गई थी।

तब से वो हमारे साथ ही रहती थी। हमारा घर कुछ ज्यादा बड़ा नहीं है। जरूरत भर ही कमरे थे। एक कमरे में मां पापा और दूसरे कमरे में भईया और भाभी रहते हैं। तीसरे कमरे में मैं और रीना दीदी और उनका बेटा रहते है।

मेरा कमरा छोटा है इसलिए उसमे अलग बिस्तर लगाने की कोई गुंजाइश नहीं थी। इसलिए मैं दीदी और बिट्टू( बेटा ) एक साथ एक ही बिस्तर पर सोते है। दीदी भी शायद मुझे अभी भी बच्चा ही समझती थी। इसलिए शायद उनको मेरे साथ सोने में कोई परेशानी नहीं होती थी।

पलंग के एक तरफ मैं बीच में बिट्टू और फिर दीदी सोते थे। लेकिन एक रात सब खाना खाकर अपने अपने कमरे में चले गए। मैं सिगरेट लेकर आंगन में झाड़ियों के पीछे छुपकर सिगरेट पीने के लिए खड़ा हो गया।

हमारा आंगन खुला खुला सा जिसमें बागीचे की तरह पौधे लगे हुए हैं। मैंने झाड़ी के पीछे छिपकर सिगरेट सुलगाई ही थी। तब तक रीना दीदी आंगन में आती हुई दिखी। वो मुझसे कोई 10 फिट की दूरी पर आकर रुकीं।

मुझसे अनजान वो ठीक मेरी तरफ अपनी पीठ करके खड़ी थी। फिर उन्होंने हल्के हल्के अपनी साड़ी पीछे से उठानी शुरू की और पीछे से अपनी साड़ी को जांघ तक उठाकर उन्होंने अपनी चड्डी नीचे खींच ली।

फिर वो मेरी आंखों के सामने बैठकर पिसाब करने लगी। मैंने पहली बार किसी औरत की नंगी गांड़ अपने आंखों से देखी थी। बिल्कुल बिना किसी दाग के सफ़ेद गोरी गांड़ देखकर मेरा लन्ड टनक गया।

मैं झाड़ी के पीछे से दीदी की गांड़ को बड़े गौर से देखने लगा। साथ ही उनके पेशाब की धार मारती हुई आवाज़ को सुन रहा था। मैं दीदी की गोरी और चौड़ी गांड़ को देखकर मानो समोहित हो गया।

कुछ देर बाद जब दीदी उठी और अपनी साड़ी को ऊपर उठाकर जैसे ही थोड़ी तिरछी ही और अपनी मसलदार जांघों पर से चड्डी को ऊपर खींचने लगी तो मैं उनकी जांघों को देखकर पागल सा हो गया। ये सब कुछ मैं पहली बार देख रहा था।

तो आप सब अंदाजा लगा ही सकते है उस वक्त मेरी हालत क्या होगी। दीदी की सुडौल गोरी चिट्ठी जांघें देखकर मेरे लन्ड से पानी रिसने लगा। मैंने मन ही मन कहा क्या गोरी चिट्ठी जांघ है यार काश मैं उनको छू सकता।

उसके बाद दीदी अपनी साड़ी ठीक करके चली गई। काफी देर मेरे मन की स्थिति उलट पलट थी। लेकिन मैंने फैसला कर लिया था की अब मैं दीदी की चूत में अपने लन्ड का रस डालकर ही रहूंगा।

मैं अपने कमरे में गया तो देखा की दीदी पहले से ही बिट्टू के साथ बिस्तर पर लेटे हुए ही खेल रही थी। मैं बिस्तर पर अपने कोने में और लेट गया। मैंने बिट्टू के साथ खेलना शुरू किया ताकि दीदी को थोड़ी शांति मिले और वो जल्दी से सो जाए।

क्योंकि दीदी कम पावर वाली नींद की गोलियां खाकर सोती थी। डायवोर्स के बाद उनकी नींद न आने की बीमारी शुरू हो गई थी। इसलिए वो नींद की गोलियां खाती थी। ठीक सब कुछ मेरे प्लान के मुताबिक़ ही चल रहा था।

मैं बिट्टू के साथ खेलने लगा दीदी को शांति मिलने लगी। वो रजाई ओढ़कर शांति से सो गईं। बिट्टू भी खेलते खेलते सो गया। लेकिन मैंने जान बूझकर बिट्टू को अपनी जगह पर सुला दिया और मैं दीदी और बिट्टू के बीच में सोने का नाटक करने लगा।

क़रीब रात के 12 बजे मैंने अपना एक हाथ दीदी की कमर पर रख दिया और करीब 10 मिनट तक मैंने अपना हाथ वही जमाएं रखा। दीदी सीधा पीठ के बल सोई हुई थी। फिर मैंने अपना पैर उनके पैर की तरफ किया।

ताकि मुझे ये पता चले की अभी मैं उनकी साड़ी ऊपर उठा सकता हूं की नहीं? दीदी के दोनों टांग सीधे थे। अपना काम पूरा करने के लिए दीदी को बाईं ओर पलटना जरूरी था। लेकिन मैं पहले ये पक्का करना चाहता था की दीदी गहरी नींद में सो रही हैं या नहीं।

मैंने अपना हाथ उनके पेट पर रखा जो उनकी सांस लेने के कारण ऊपर नीचे हो रहा था। फिर मैंने अपनी उंगलियों को उनके पेट पर चलाना शुरू किया और उनकी नाभि तक पंहुच गया।

दीदी की नाभि को छूकर मेरा लन्ड शख्त हो गया। मेरी उंगलियां दीदी के नाभि के नीचे कमर तक पहुंच गई थीं। फिर जैसे ही दीदी ने सांस छोड़ी उनका पेट ढीला हुआ और मैंने अपनी हथेली दीदी के पेट के उपर से सरकाते हुए उनकी कमर पर से उनकी साड़ी में घुसा दी।

अब मेरी उंगलियों ने दीदी की झांटों को छू लिया था। मेरे मन में एक अजीब किस्म के लड्डू फुट रहें थे। मैंने अपनी उंगलियों को आगे बढ़ाते हुए उनकी जांघ के बीच वाले हिस्से पर पहुंचा दिया। मैंने एक उंगली से दीदी की चूत के फांकों को छुआ।

मेरे शरीर में एक अलग सी फुर्ती दौड़ गई। जैसे मैंने किसी गुनगुने पानी को छुआ हो। मैं अपनी एक उंगली से दीदी की चूत के दोनों फांकों को सहलाने लगा। कभी मेरी उंगली उनकी चूत के दाने को छूती तो कभी उनके फांकों को चीरते हुए बीच में चली जाती।

कुछ देर मैं वैसा ही करता रहा अचानक इस बार जब मेरी उंगली दीदी के चूत के दोनों फांकों के बीच जब घुसी तो इस बार मुझे कुछ अजीब सा लगा। दीदी की चूत से कुछ गीला गीला सा निकल रहा था। जो मुझे दिख तो नही रहा था। लेकिन मेरी उंगली पर महसूस हो रहा था।

मैंने जब उंगली को थोड़ा दबाया तो मेरी उंगली आराम से दीदी की चूत में चली गई। उंगली अंदर घुसते ही मुझे ऐसा लगा की किसी गरम लावा में मैंने उंगली कर दी है जो बाहर आने को बेताब है। मैं अब दीदी की चूत में अपनी उंगली बिना किसी डर के अंदर बाहर करने लगा।

दीदी की चूत में उंगली डालने से अजीब सी खुशी मिल रही थी। लेकिन मेरे लन्ड का लावा अब जवान हो चुका था और फटने को तैयार था। मैं जो कुछ भी कर रहा था वो बंद किया।
अपना हाथ दीदी के साड़ी से निकाला और सबसे पहले मैंने रजाई के अंदर ही अपनी पैंट और चड्डी उतार दी।

अब मैं दीदी के साथ नंगा लेटा हुआ था। मैंने दीदी को धकेलकर बाईं ओर करवट में लेटा दिया। अब मुझे समझ आ गया था की दीदी अभी उठने वाली नहीं है अब दीदी की पीठ और गांड़ मेरी तरफ थे।

पहले तो मैंने दीदी की गांड़ को साड़ी के उपर से ही सहलाया और दबा दबाकर मजे लेता रहा। फिर मैंने दीदी की साड़ी ऊपर उठा दी और उनकी गोरी चिट्ठी चौड़ी गांड़ को देखकर खुश होता रहा। फिर मैंने दीदी की चड्डी को खींचकर आराम से उनके घुटनों तक पहुंचा दिया।

फिर मैं दीदी की गांड़ पर अपना लन्ड सटाकर खेलने लगा। अपने मोटे लन्ड से उनकी सॉफ्ट सॉफ्ट गांड़ दबाने पर एक अलग ही सुकून मिल रहा था। मैं कभी अपने लन्ड से दीदी की गुबारे जैसी गांड़ को दबाता तो कभी अपना मोटा लन्ड उनकी गांड़ के बीच डालकर उनकी गांड़ की गहराइयों को नापता।

दीदी की गांड़ बहुत बड़ी और लचकदार थी। जिससे मेरा लन्ड पूरा का पूरा उनकी गांड़ की वादियों में खो जा रहा था। एक बार जब मैं दीदी की गांड़ की दरार में अपना लन्ड डालकर दबा रहा था। तो अचानक फिसलन के कारण मेरा लन्ड थोड़ा नीचे की ओर चला गया।

जहां दीदी की चूत का छेद था। जैसे ही मेरा लन्ड दीदी की चूत से सटा मेरे ने लन्ड भरभरा कर अपना सारा रस वही उगल दिया। जिस वजह से दीदी की चूत पर मेरे लन्ड का चटचटा पानी फैल गया।

मेरा सफ़ेद वीर्य दीदी की चूत से लेकर उनकी जांघ पर बह रहा था। जैसे ही मेरा वीर्य छूटा तो मैं थोड़ा ठंडा हुआ। लेकिन चूत और लन्ड के सटने से जो एहसास मुझमें जगा वो मैं बयान नहीं कर सकता।

मैंने दीदी की उपर वाली टांग को थोड़ा आगे खिसकाया और उनकी जांघ के नीचे हाथ लगाकर मैंने उनकी उपर वाली जांघ को उपर उठा दिया। अब दीदी की चूत पूरी तरह से आजाद थी। पैर उपर उठने की वजह से थोड़ी सी खुली हुई भी थी।

मैंने अपने लन्ड पर थोड़ा सा थूक लगाया और एक हाथ से अपना लन्ड पकड़कर मैंने धीरे धीरे अपने लन्ड को उनकी चूत के अंदर धकेलना चालू कर दिया। थोड़ी दिक्कत से ही लेकिन हर दबाव के साथ मेरा लन्ड दीदी की चूत में जानें लगा।

करीब 15 मिनट की मेहनत के बाद मेरा लन्ड पूरा का पूरा अंदर दीदी की चूत में जा चुका था। एक बात और दोस्तों जैसे ही मैंने अपने लन्ड का सुपाड़ा दीदी की चूत में डाला मैं उसी वक्त फिर से झड़ चुका था और मेरा वीर्य दीदी की चूत में तो कुछ उनकी चूत के बाहर निकल रहा था।

मैंने दीदी का पेट आगे से पकड़ लिया ताकि मैं जब अपने लन्ड का ज़ोर लगाऊं। तो दीदी वहीं टिकी रहे मैंने वैसा ही किया। मैं दीदी का पेट पकड़कर पीछे से होले होले से धक्के देकर अपने लन्ड को उनकी चूत में ठेलने लगा।

क्या मस्त मलाई जैसी चूत थी मेरा लन्ड गचागच निगल रही थी। काफ़ी देर से मैं धीरे धीरे दीदी को वैसे ही चोद रहा था। लेकिन अब उस पोजीशन में मुझे मजा नही आ रहा था। तो मैंने दीदी को धीरे से पेट के बल पलट दिया अब उनकी गांड़ उपर हो गई थी।

मैंने अपने और दीदी के उपर से रजाई हटाई और दीदी की नंगी गांड़ का खुल के नजारा लेने लगा। फिर मैंने दीदी के दोनों टांगों को थोड़ा फैला दिया। जिससे दीदी की गांड़ की दरार और चूत को ढके हुए उनकी जांघों के दीवार खुल गए।

मैंने अपना लन्ड दीदी की गांड़ की दरार में रगड़ते हुए उनकी चूत पर लगाई। अब दीदी की चूत गीली हो चुकी थी। मैंने दीदी की जांघों के उपर बैठे हुए ही अपनी कमर को थोड़ा आगे चलाया। जिससे मेरी दीदी की चूत को दोनों फांकों को चीरता हुआ मेरा लन्ड उनकी चूत में समा गया।

मैं दीदी की गांड़ को देखते हुए उनकी चूत चोद रहा था। मैं उनकी गांड़ देखते देखते इतना उत्तेजित हो गया था की मैंने और दो बार अपना वीर्य उनकी मखमली चूत में डाल दिया था।

मैंने 3 बजे भोर तक दीदी की चूत में अपना मूसल जैसा लन्ड डालता रहा। मैंने करीब एक हफ़्ते तक दीदी को हर रात चोदता था। अब तो मैंने उनकी ब्लाउज तक को खोलना चालू कर दिया था और सारी रात मैं उनको चोदते हुए उनकी निप्पलों को पीता था।

एक रात मेरा भांडा फुट गया हर रात की तरह इस रोज भी मैं दीदी की चूत चोद रहा था। अचानक से मेरा लन्ड फिसलकर उनकी चूत की जगह उनकी गांड़ में घुस गया और मैंने भी चूत समझकर उसी वक्त ज़ोर लगा दिया।

दीदी कराहने लगी और झट से उनकी आंख खुल गई। लेकिन उस वक्त मैं उनके ऊपर चढ़ा हुआ था। इसलिए वो भाग तो नही पाई लेकिन मुझे उनके साथ ये सब करते देख वो शॉक में आ गई और मैंने भी ये नही देखा की मेरा लन्ड उनकी चूत की जगह उनकी गांड़ में घुसा हुआ है।

मैंने आर या पार की लड़ाई सोचकर एक और धक्का मारा जिससे मेरा बचा हुआ लन्ड भी दीदी की गांड़ में घुस गया। दीदी बदहवास सी हो गई दर्द के मारे उनका चेहरा लाल पड़ चुका था। वो घुट्टी घुट्टी आवाज में चिला रही थी अरे गौरव ये क्या कर रहा है तू…

उन्होंने अपने हाथ से मेरे लन्ड को पकड़ लिया और मुझे लन्ड निकालने को कहने लगी। मैंने अपना लन्ड उनकी गांड़ से निकाल कर उनकी चूत में डाल दिया। जैसे ही मेरा लन्ड दीदी की चूत में गया वो और ज्यादा गुस्सा करने लगी।

लेकिन मैंने लन्ड जैसे ही उनकी चूत में डाला मैंने तुरंत उनकी चूत में धक्के लगाना शुरू कर दिया था। वो थोड़ी ही देर में गुस्से की जगह सिसकियां निकालने लगी। मुझे धक्के मारने में दिक्कत हो रही थी। क्योंकि दीदी ने अपने दोनों टांगों को आपस में सटा लिया था।

लेकिन मैं फिर भी उनकी चूत में अपना लन्ड डालता रहा जाहिर सी बात है। मुझे तकलीफ हो रही थीं और दीदी की जांघों को भी तकलीफ़ हो रही थी। आखिरकार उन्होंने मज़बूरी में ही सही लेकिन अपनी टांगें फैला दी।

मैं पूरी आज़ादी के साथ दीदी की चूत में अपना लन्ड चोदते हुए उनके ऊपर लेट गया और नीचे से अपने दोनों हाथों से उनकी बड़ी बड़ी चूचियों को ब्लाउज के उपर से ही मसलने लगा।

दीदी आअह्ह्ह आह… ऊओओओ… करती हुई मेरे लन्ड को अपनी चूत में ले रही थी। करीब मैंने दीदी को 2 घंटे तक चोदा और दो बार अपना वीर्य दीदी की चूत में ही डाल दिया।

उसके बाद दीदी चूत से मैंने जैसे ही अपना लन्ड निकाला दीदी उठकर सीधे आंगन में भागी और मूतने लगी। मैं समझ गया था दीदी मूतने के बहाने अपनी चूत से मेरा वीर्य निकाल रही थीं।

अगली सुबह हम दोनों एक दूसरे से नज़रे नही मिला पा रहे थे। दोपहरी को जब सब अपने अपने कमरे में सोने चले गए तो। दीदी ने मुझे छत पर बुलाया और बोलने लगी। मैं समझ गई तू ये सब मेरे साथ कब से कर रहा है और मैं नींद में चूदाई के एहसास को सपना समझकर रोज खुश हो रही थी।

मुझे यही लगता था की मैं रात को ये सब के सपने देख रही हूं। इसलिए जब मैं सुबह पेशाब करती थी। तो वीर्य देखकर लगता था की ये मेरा ही वीर्य है। लेकिन कल रात मुझे सब समझ आ गया की इतने दिनों से जो वीर्य मेरी बुर से निकल रहा था वो तेरा वीर्य मेरी बुर से निकलता था।

उसके बाद दीदी ने कहा तुझे जरा भी डर नहीं लगा की अगर मैं प्रेगनेंट हो जाती तो लोग क्या कहते। मैं ख़ामोश होकर सब सुन रहा था। फिर दीदी ने कहा जब तुझे करना ही था तो कॉन्डम लगाकर करता।

दीदी ने थोड़ी देर चुप रहने के बाद कहा कॉन्डम का पैकेट ले आना मैं नहीं चाहती की मैं तेरे बच्चे की मां बन जाऊं। मैं ये सुनकर बहुत ही खुश हो गया मैं झट से दीदी को गले लगा लिया और उनके होठों को अपने होंठों में भरकर उनको चूमने लगा।

तो दोस्तों उम्मीद है आप सभी को मेरी ये कहानी पसंद आई होगी।

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