जंगल में चुदी बेघर बुढ़िया औरत

मैं नवीन जोशी मेरी उम्र 22 साल है। ये चुदाई का सिलसिला यही कोई 2-3 दिन पहले से ही शुरू हुआ था। मेरा परिवार कुछ दिन पहले ही नए शहर में सिफ्ट हुआ है। मैं बचपन से जिस शहर में रह रहा था। वहां मेरे कई दोस्त थे। जिनके साथ मैं बचपन से था और हम सारे दोस्त बहुत मौज मस्ती किया करते थे।

जंगल में चुदी बेघर बुढ़िया औरत

लेकिन अब इस अंजान शहर में मेरा कोई दोस्त नहीं था। यहां तक की जिस सोसाइटी में हमारा घर था। उसमें कुछ गिने चुने ही घर थे। बाकी के सारे प्लॉट खाली पड़े थे। मैं जब अपने नए घर में गया तो मेरा वहां मन नही लगता था। मुझे मेरे सारे दोस्त और वो मस्ती भरे दिन बहुत याद आते है।

उनके साथ की सारी मौज मस्ती मुझे याद आती थी। जिससे मेरा नए घर में और भी मन नही लगता था। आस पड़ोस में मेरी उम्र का कोई साथी भी नही था। जिससे मैं बात कर सकू जो गिने चुने घर थे। उनमें ज्यादातर बुजुर्ग लोग और काम काजी लोग थे। मैं दिन भर घर में अकेला बोर होता था।

एक दिन मैं घर की छत पर था तभी मैंने देखा की मेरी सोसाइटी के पीछे एक छोटा सा घना जंगल था। मुझे हरियाली बहुत पसंद है। तो मैंने सोच लिया अकेले घर पर बैठने से अच्छा है की मैं जंगल घूम आऊ। तो मैंने तुरंत अपने कपड़े बदले और अपनी हाफ पैंट और t-shirt पहन ली और जंगल की तरफ बढ़ने लगा।

कुछ ही देर में मैं जंगल पहुंच गया वहां पहुंचते ही मुझे एक अलग सा ही सुकून मिला। वो चिड़ियों की चहचहाने की आवाजे और ठंडी हवा के झोके एक अलग सा सुकून दे रहें थे। मैं आगे बढ़ा तो मुझे पानी के गिरने की तेज आवाज आई जब मैं उस आवाज की तरफ बढ़ा तो मैंने देखा वहां एक छोटा सा झरना था। जिससे ऊंचाई से गिरते पानी की आवाज मुझे सुनाई दे रही थी।

मैं उस झरने के करीब जाकर एक पत्थर पर बैठ गया और वहां की शांति का मजा लेने लगा। करीब आधे घण्टे बाद मुझे मेरे पीछे से पेड़ से गिरे हुए सूखे पत्ते की सरसराने की आवाज आई जब मैंने पीछे पलटकर देखा तो एक बुढ़िया औरत जिसने एक मैली सी साड़ी पहनी हुई थी। उसकी साड़ी जहां तहां से फटी हुई थी। ऐसा लग रहा था उसने वो कपड़े कई दिनों से पहने थे।

उसकी दुर्दशा अजीब सी थी। किसी तरह भी अपने बदन पर साड़ी लपेटे हुए जो की मानों आधी खुली हुई थी। बिखरे हुए काले सफ़ेद बाल और पुरे बदन पर मानों मैल बैठी हो। वो एक बेघर भिखारी औरत थी। उसकी आधी साड़ी उसके बदन पर और आधी ज़मीन पर सोहरती आ रही थी। उसकी हाथों में एक खाने की पोटली थी जो मुझे साफ नजर आ रही थी।

वो आकर मूझसे कुछ दूरी पर एक पत्थर पर बैठ गई और एक बार मेरी तरफ देखकर उसने अपने गंदे चेहरे के साथ एक मुस्कान दी। फिर उसने अपनी खाने की पोटली खोली और चुपचाप बैठकर खाना खाने लगी। जब वो खा रही थी तब मैं एक टक उसी औरत की निहारे जा रहा था।

जब वो अपने दोनों हाथों से रोटी को पकड़कर अपनी दांतों से नोच नोचकर खा रही थी। तभी उसकी साड़ी उसके सीने पर से हट गई और उसकी दाहिनी चूंची उसकी साड़ी से निकलकर बाहर आ गई। उसने ब्लाउज़ नही पहना हुआ था। सिर्फ़ उसकी साड़ी मात्र से ही अब तक उसकी चूंची ढकी हुई थी।

जब मैंने उसकी बड़ी सावली मखमली चूची को देखकर मेरा दिमाग ही हिल गया। मैं उस वक्त बिना कोई रोक टोक के उसकी चूंची को घूरे जा रहा था। मैं उसकी चूंची को देखकर मन ही मन उसकी चूंची की तुलना अपनी मां की चूंची से करने लगा। उस बुढ़िया औरत की चूंची का साइज मेरी मां से भी बड़ा था।

उसकी चूची देखकर लग रहा था। मानों उनमें कितना रस भरा हुआ था। उस बुढ़िया की उम्र लगभग 50 साल लग रही थी। उसकी चूंची में अब भी कसक थी। मैं उसकी चूंची को देखकर वासना से भर गया। मैंने इधर उधर देखा जब मुझे कोई नही दिखा तो मैंने चुपके से अपने पैरों को उसकी तरफ सीधा किया।

फिर मैंने अपनी हाफ पैंट अपनी जांघों तक उतार दी और अपना तना हुआ लंड पैंट से बाहर निकाल लिया। फिर मैंने अपने 4″ मोटे 8″ लंबे लौड़े को अपनी मुट्ठी भर लिया और उसके सामने ही अपने लंड की मुट्ठ मारने लगा। जब कुछ देर बाद उसने मेरी तरफ देखा तो वो एक अजीब सी मुस्कान के साथ ठहाके मार हंसने लगी।

वो खाना खाते हुए बार बार मेरे लंड को देखती हुई पगली जैसी हंस रही थी। मैं भी उसको अपना मोटा लौड़ा दिखाकर हिलाते हुए मुस्कुरा रहा था। जब मैं समझ गया की ये पगली बुढ़िया कोई ऐतराज़ नहीं जता रही है। तब मैं उठकर उसके पास गया और उसके पास खड़ा होकर अपना लंड हिलाने लगा।

जब मेरा माल निकलने वाला था तो मैंने उसके सीने पर से उसकी पुरी साड़ी हटा दी। वो अब भी रोटी चबाने में मशगूल थी। मैं उसकी दोनों नंगी चूंची को देखकर अपना लंड ज़ोर ज़ोर से हिलाने लगा। अब मैं झडने वाला था तो मैंने अपना लंड उसके सीने पर कर दिया और मेरे लंड का सारा माल उसकी चूंचियों पर झड़ गया।

मेरे लंड से निकला वीर्य उसकी दोनों बड़ी बड़ी चुचियों पर से बहते हुए उसके पेट पर गिर रहा था। वो पगली बुढ़िया अपनी वीर्य से सनी चुचियों और मेरे खड़े लंड को देखकर हंसे जा रही थी। ऐसा लग रहा था की उसके साथ कोई खेल हो रहा हो।

उस घने जंगल में दूर दूर तक कोई नही था। जिससे मेरी हिम्मत और बढ़ गई। मैंने अपनी पूरी पैंट निकाल दी और मुस्कुराते हुए उससे कहा की तुम भी गंदी हो गई हो चलो झरने में नहा लो। ये कहता हुआ मैं झरने की तरफ आगे बढ़ने लगा। मैंने देखा वो भी मेरे पीछे पीछे आ रही थी।

हम दोनों झरने में पहुंच गए थे। मैंने अपने बचे खुचे कपड़े भी उतार दिए और उसे भी इशारे में कहा की तुम भी कपड़े निकालो वो मेरी बात समझ गई। जैसे ही उसने अपनी साड़ी उतारी वो पूरी की पूरी नंगी हो गई। मैं उसके नंगे बदन को देखते ही उसकी चुत लेने की फ़िराक में आ गया।

जैसे ही उसने अपनी साड़ी उतारी मेरी नजर उसके मैले कुचैले नंगे बदन पर पड़ी मैंने उसके नंगी बड़ी बड़ी चुचियों को अपने हाथों में ले लिया। अब भी वो हंसे जा रही थी। मैं अपने दोनों हाथों से उसकी चूंचियों को दबाने टटोलने लगा। तभी मेरी नजर उसकी जांघों के बीच गई।

उसकी चुत पर कुछ काले कुछ सफ़ेद झांटों के काफ़ी लंबे लंबे बालों का गुच्छा दिखाई दिया। जिन्होंने उसकी चुत को अच्छे से ढक रखा था। उसकी जांघों पर भी काफी बाल थे। शायद कई सालों से उसने अपनी झांटे साफ़ नही की थी। अब मेरा मन पूरी तरह से उस बुढ़िया औरत की चुत लेने को मचलने लगा।

मेरा लंड बहुत टाइट हो गया था। मैंने जल्दी जल्दी से उस पगली बुढ़िया से कहा नहा लो वो पानी में बैठकर नहाने लगी। मैंने भी उसके बदन को रगड़ रगड़ के साफ किया। कुछ ही देर में वो थोड़ी साफ़ सुथरी दिखने लगी अब उसके बदन से बदबू नही आ रही थी।

अब मैंने असली काम स्टार्ट किया मैं उसे झरने के किनारे एक पत्थर के पास ले गया मैं पत्थर के सहारे खड़ा हो गया और उस बुढ़िया को अपने पैरों के पास बैठने को कहा वो तुंरत बैठ गई। फिर मैंने उसे अपना लंड पकड़ाकर लंड चूसने को कहा। तो शायद वो मेरी बात समझ नहीं पाई। फिर मैंने जब उसे इशारे में लंड को मुंह में लेने को कहा तो उसने तुरंत ही मेरा लंड अपने मुंह में ले लिया।

फिर क्या उसके बाद किसी पागल को भी समझाने की ज़रूरत नही पड़ती। उस बुढ़िया ने अपने आप ही मेरा लंड चूसना शुरू कर दिया मैं भी उसके बालों को पकड़कर ज़ोर ज़ोर से अपना लंड उसके मुंह में देने लगा। अब मेरा हर धक्का मेरे लंड को उसके हलक तक पहुंचाने लगा।

करीब 15 मिनट तक उसके मुंह में अपना लंड चोदने के बाद मैंने अपना लंड उसके मुंह से निकाला और अपना सारा वीर्य उसके चेहरे पर झाड़ दिया। मेरा लंड उसके थूक से चमक रहा था और उसकी चुत चोदने के लिए उतावला हो रहा था। मैंने उसे उठाकर खड़ा किया और उसे अपने सीने पर दबा लिया। फिर मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी गांड को पकड़ा।

मैं अपने हाथ के दोनों पंजों से उसकी गांड को मसल रहा था। साथ ही अपना मोटा लंबा लंड उसकी दोनों जांघों के बीच घुसाकर बिना उसकी चुत में डाले उसकी घनी झांटों से ढकी चुत को अपने लंड से रगड़े जा रहा था।

अब मैंने उस पगली बुढ़िया को गरम कर दिया था। वो मेरे गले से लगे हुए अपनी गरम सांसे मेरे कंधों पर छोड़ रही थी। फिर मैंने उसे पत्थर पर लेटा दिया और मैं उसके उपर चढ़ गया। मैंने उसके उपर लेटकर उसकी दोनों चूचियों को मसलना शुरू किया और हर तरह से उसके नंगे बदन को अपने बदन से मसला।

कभी मैं उसे सीधा लेटाकर उसके चुचियों को अपने सीने और उसकी कमर को अपनी कमर से और अपनी टांगों से उसकी टांगों को दबाता मसलता तो कभी उसको उल्टा लेटाकर उसकी गांड को अपने लंड से रगड़ता ऐसे ही एक घंटे तक मैंने उसे चुदाई की आग में तड़पाया और खुद भी तड़पा मैंने उसे अच्छे से गरम कर दिया।

ताकि उसकी चुदाई की आग इतनी बढ़ जाए की जब मैं अपना मोटा लौड़ा उसकी चुत में डालू तो वो मुकर न पाए। मैंने ऐसा ही किया अब मेरे लंड में काफी देर से अकड़न होने के कारण मेरे लंड की सभी नसें टाईट हो चुकी थी। मैंने कभी अपने लंड में ऐसा बदलाव नहीं देखा था। अब मुझसे भी बर्दास्त नही हो पा रहा था।

मैंने उसको पलटकर सीधा किया और रोब से उसकी दोनों जांघों को पकड़कर अलग अलग किया। अब मैं उसकी दोनों जांघों के बीच घुटनों के बल बैठ चुका था। मैंने अपनी दो उंगलियों को उसकी चुत पर रख दिया और उसकी घनी झांटों को हटाकर उसकी चुत की छेद पर से झांटे हटाकर का रास्ता बनाने लगा।

कुछ ही पलों में मैंने उसकी चुत की छेद पर से सारे झांट हटा लिए फिर मैं थोड़ा आगे सरक गया और अपने लंड को दो उंगलियों से पकड़कर उसकी चुत पर सेट कर लिया। जैसे ही मेरे लंड ने उसकी चुत के बाहरी हिस्से की चमड़ी को छुआ शायद उसे गुदगुदी हुई और वो ज़ोर ज़ोर से ठहाके लगाने लगी।

फिर मैंने अपने लंड को पकड़ा और धीरे धीरे अपनी क़मर आगे करने लगा। शुरू में तो मेरे लंड उसकी चुत के होठों के भीतर अटका लेकिन जब मैंने उसकी चुत में थूक थूका और लंड को धकेला तब मेरा लंड उस बुढ़िया की चुत में घुस गया। अब मेरे लंड का आधा हिस्सा उसकी चुत में जा चुका था। मैंने काफ़ी देर उसकी चुत में आधा लंड घुसाए हुए रुका हुआ था।

अब उस पगली बुढ़िया की हंसी रुक गई थी अब उसके चेहरे पर दर्द झलक रहा था। जब बुढ़िया का चेहरा थोड़ा समान्य हुआ तब  मैं अपना आधा लंड बुढ़िया की चुत में घुसाए हुए अपनी क़मर उठाए  घुटनों और अपनी कोहनी के बल बुढ़िया के उपर आ गया। फिर मैंने एक तेज धक्के से अपना बचा हुआ लंड भी एक बार में ही बुढ़िया की चुत में धकेल दिया।

उस धक्के के कारण मेरी कमर और बुढ़िया की कमर आपस में जोर से चिपक गई और ठप्प… की तेज़ आवाज़ आई। बुढ़िया की चुत में साबुत लंड जा चुका था। बुढ़िया ने मुझे ज़ोर से पकड़ लिया और आह.. ह ह ह अ ह ह…. कर चींखने लगी और तुंरत ही उसकी चुत अंदर से सिकुड़ने लगी। उसकी चुत के दोनों होठ मेरे लंड को कसने लगे।

मैं उसकी चुत की गरमी से और उत्तेजित हो गया और मैंने उसकी तकलीफों की परवाह ना करते हुए अपना लंड उसकी चुत में ठेलने लगा। एक दो धक्कों के बाद ही उसकी चुत से उसका वीर्य निकलने लगा शायद उसे ऑर्गेज्म महसूस हुआ था और वो झड़ गई थी।

मैंने बिना रुके अपना पूरा दम लगाकर उसकी चुत में अपना लंड चोदने लगा। बुढ़िया आह…आह… आ… हह्ह… हह्ह्हअ…. की आवाजे निकालने लगी। अब मैं लगातार रफ़्तार में अपना लंड बुढ़िया की चुत में घुसाने लगा। मैं उसकी चुत चोदते चोदते ही उसकी चुत में झड़ गया लेकिन मुझपर झड़ने का कोई असर नहीं हुआ।

मैं झडने के बावजूद उसकी चुत चोदे जा रहा था। अब हम दोनों के वीर्य का मेल उसकी चुत में हो रहा था। मैं उसकी चुत में अपना मोटा लंबा लंड घुसाए जा रहा था। जिस वजह से उसकी चुत में भरे हुए दोनों के  वीर्य का मंथन मेरे लंड से बार बार लगातार हो रहा था।

मेरे लंड पर वीर्य की मोटी परत चढ़ गई थी अब मेरा लंड अच्छे से फिसल फिसलकर उसकी चुत में जा रहा था। जिससे मेरी रफ़्तार बढ़ गई थी। मैं तेज़ी से उसकी चुत को चोद रहा था करीब आधे घंटे उसकी चुत चोदने के बाद मैं फिर झड़ने वाला था। मैंने अपने धक्कों की गति बढ़ा दी।

और एक आखिरी तेज धक्का मार कर मैं बुढ़िया की चुत में अपना लंड अन्दर तक घुसेड़ दिया और बुढ़िया के उपर थककर लेट गया। बुढ़िया ने अपनी चुत ने मेरा सारा वीर्य पी लिया। उसके कुछ देर बाद मैंने अपना लंड बुढ़िया की चुत से निकाला और बुढ़िया को बैठाकर फिर से अपना लंड चूसने को कहा।

बुढ़िया फिर से मेरा लंड चूसने लगी और कुछ ही देर में उसने फिर से मेरा लंड खड़ा कर दिया लेकिन अब मैं बुढ़िया की गांड मारने के फिराक में था। जैसे ही मेरा लंड फिर से तैयार हुआ मैंने बुढ़िया को उल्टा होकर लेटने को कहा। बुढ़िया तूरंत अपने पेट के बल अपनी गांड उपर करके लेट गई।

उसे जरा भी अंदाजा नहीं था की मैं उसकी गांड चोदने के फिराक में हूं। मैं अपना लंड पकड़कर बुढ़िया की जांघों पर बैठ गया। फिर मैंने बुढ़िया के गांड के दोनों हिस्सों को अलग अलग किया। लेकिन जब मेरी नज़र बुढ़िया की गांड की छेद पर पड़ी तो देखा की बुढ़िया की गांड में भी ढेर सारे बाल थे।

उसकी गांड के लंबे बालों ने उसकी गांड की छेद को पूरी तरह से ढक रखा था। जिससे उसकी गांड मारना आसान नहीं था। मेरा तो बुढ़िया की गांड की टाईट छेद को देखकर मन किया की अभी भी ही उसकी गांड की छेद को अभी अपने लंड से फाड़ डालूं। लेकिन उसकी गांड में काफी बाल थे जिससे गांड चुदाई करने में तकलीफ होती।

अंत में मैंने फिर से उसकी जांघों के बीच से अपना लंड उसकी चुत में घुसा दिया और उसकी गांड पर ज़ोर ज़ोर से अपनी क़मर पटक पटककर फिर से उसकी चुत पेलने लगा। कुछ देर फिर उसकी चुत चोदकर मैं झड गया।

उसके बाद मैं उठकर बैठ गया वो बुढ़िया भी बैठ गई अभी भी मेरे मन में उसकी गांड न मार पाने का मलाल था। तो मैंने उस बुढ़िया को कहा आज तुम्हें कैसा लगा मजा आया ना?? उसने बड़े मासूमियत से सर हिलाकर हा कहा।

मैंने कहा कल फिर तुम आओगी यहीं तो उसने फिर सर हिलाकर हंसते हुए हां कहा। उसके बाद मैंने अपने कपडे पहने और अपने घर आ गया। मैं उस दिन बहुत खुस था। अब मैं अगले दिन की प्लानिंग करने लगा। शाम को बाजार जाकर मैंने सबसे पहले एक झांटे साफ़ करने के लिए एक रेजर लिया और घर आकर अगले दिन का इंतेजार करने लगा।

अगले दिन ठीक उसी समय मैंने सेविंग रेजर को अपनी पॉकेट में भरा और खाने का सामान लेकर मैं फिर से जंगल पहुंच गया। बुढ़िया भी कुछ देर बाद आ गई। मैंने उसे खाना दिया जब उसने खा लिया। तब मैं उसे झरने के पास ले गया और फिर उसकी साड़ी को खोल दिया।

अब वो घुटने तक पानी में नंगी खड़ी थी। मैंने भी अपने कपड़े उतार दिए और नंगा होकर रेजर लि और उसके पास पानी में आ गया। मैंने उसको अच्छे से नहला दिया और रेजर लेकर उसकी चुत की झांटों कों साफ करने लगा। वो फिर से ठहाके लगा हंसने लगी कुछ ही देर में उसकी चुत एक दम साफ़ सुथरी हो गई।

फिर मैंने उसे झरने के पास एक पत्थर पर पेट के बल लेटा दिया और  उसकी गांड के दोनों हिस्सों को अलग कर उसकी गांड के बालों को साफ करने लगा थोड़ी देर में मैंने उसकी गांड से एक एक बाल छिल दिया। अब उसकी गांड में एक भी बाल नहीं थी।

अब मैं उसकी गांड की छोटी सी छेद को साफ देख सकता था। वो भी अपनी चिकनी चुत और बिना बालों वाली गांड को छूकर हैरान थी और हंस रही थी। उसकी झांटे साफ़ करते हुए ही मेरा लंड टाइट हो गया था। मैंने देरी न करते हुए अपने मुंह से थूक निकालकर अपने लंड पर लगाया।

मैंने उसकी गांड के दोनों हिस्सों के बीच अपना मुंह लगाकर उसकी गांड की छेद पर थूक दिया और फिर अपने लंड से उस थूक को उसकी गांड की छेद पर मलते हुए अपना लंड उसकी गांड की छेद में दबाने लगा।

बुढ़िया दर्द से चीखने लगी और अपने दोनों हाथों को मेरी जांघों पर मारने लगी। मुझे उसकी इस हाथों की हरकत से गुस्सा आ रहा था। वो मेरे घुटनों को नोच रही थी। मैंने उसके दोनों हाथों को पकड़कर उसकी पीठ पर दबा दिया और अपने एक हाथ से अपने लंड को पकड़कर उसकी गांड में अपनी कमर का दबाव बढ़ाने लगा।

कुछ ही देर में मेरा लंड उसकी गांड में घूस गया अब मैंने अपनी कमर को उसकी गांड पर पूरा चिपका लिया। जिससे मेरा लंड धीरे धीरे अपने आप मेरी क़मर की भार से उसकी गांड में जाने लगा। जैसे जैसे मेरा लंड बुढ़िया की गांड में घुस रहा था। बुढ़िया चिंखे चिल्लाए जा रही थी।

अब मैं उसकी गांड की छेद को ढीला करने के लिए मैं अपनी क़मर को बुढ़िया की गांड पर गोल गोल घुमाने लगा। जिससे बुढ़िया की गांड की छेद मेरे लंड के घूमने से थोड़ी फैल गई और उसका दर्द थोड़ा कम हुआ उसके बाद मैं बड़े बड़े और लम्बे झटकों के साथ अपना लंड बुढ़िया की गांड में डालने लगा।

बुढ़िया अभी भी चिल्लाए जा रही थी। लेकिन उसकी चींख सुनने वाला कोई नहीं था। क्योंकि हम घने जंगल के अंदर थे। मुझे लगा की  अब जो मैंने इसकी गांड के साथ किया है उसके बाद ये कभी मुझे नही मिलेगी या कभी नहीं चोदने देगी।

मैं उसकी गांड का बुरा हाल कर चुका था बुढ़िया अपनी चुदती टाईट गांड के दर्द से छटपटा रही थी। लेकिन मैं उसकी गांड मारता रहा। बुढ़िया अचानक बेहोश हो गई। तो मैं थोड़ा रुका और अपना लंड उसकी गांड से बाहर निकाल लिया। बुढ़िया काफी देर से चीख चिल्ला रही थी और कमज़ोरी से बेहोश हो गई थी।

मैंने बुढ़िया की दोनों टांगों को फैला दिया और फिर से अपना लंड उसकी गांड में डालकर बुढ़िया के उपर लेट गया और अपनी क़मर उपर उछाल उछालकर बुढ़िया की गांड मारने लगा। करीब आधे घंटे तक मैंने उसकी बेहोसी में उसकी गांड मारी और झड़ गया।

बुढ़िया अभी भी बेहोश थी। मैं 15 आराम करने के बाद मिनट के बाद फिर से मैं बुढ़िया की गांड में अपना लंड डालकर उसपर चढ़ गया और इसी बार करीब 45 मिनट तक मैंने उसकी गांड चोदी।

उसके बाद मैं उसकी गांड के बाहर झड़ गया अब बुढ़िया की गांड फट चुकी थी। उसकी गांड का मैंने सत्यानाश कर दिया था। अब उसकी गांड की छेद 5 इंच बड़ी हो गई थी और उसकी गांड की छेद के चारों ओर की चमड़ी लाल हो गई थी।

अब मैंने उसको सीधा लेटा दिया और फिर से उसकी दोनों जांघों के बीच बैठकर अपना लंड उसकी चुत में घुसा दिया। अब मैं उसकी चुत मारने लगा। 20 मिनट मैं उसकी चुत में अपना लौड़ा चोदता रहा और उसकी चुत को फाड़ता रहा। उसके बाद मैं उसकी चुत में ही झड गया।

उस दिन मैं दिनभर कभी उसकी चुत तो कभी उसकी गांड में लंड डालता रहा। मैंने दिनभर बुढ़िया को इतना चोदा की पत्थर पर सारे जगह वीर्य ही वीर्य फैल गया। एक ही दिन में मैंने अपनी चुदाई की सारी भड़ास निकाल ली। बुढ़िया अब अधमरी सी हुई पड़ी थी। शाम के 4 बजे तक मैं कभी उसकी गांड को कभी उसकी चुत को पेलता रहा।

अंत में जब मेरा उस दिन के लिए मन भर गया तो मैं रुक गया फिर मैंने उस बुढ़िया से कहा माफ करना मैंने जोश जोश में तुमसे थोड़ी जबरदस्ती की माफ कर दो। तुम मुझसे दोस्ती करोगी। तो उसने हां में सर हिलाया मैंने फिर कहा कल फिर यहीं मिलोगी।

तो उसने फिर हां में सर हिलाया और अगले दिन जब वो मुझसे मिली तो उस दिन उसकी सूजी चुत और गांड़ की लाल छेद देखकर मैंने उसे उस दिन छोड़ा और बस उससे अपना लंड 3- 4 बार चुसवाया लेकिन अगले दिन से मैंने फिर उसको चोदना शुरू कर दिया। उसी तरह रोज़ वो मुझसे वही जंगल में मिलती है और मैं 2-3 दिनों से हर रोज मैं उसकी चुदाई कर रहा हूं।

error: Content is protected !!

DMCA.com Protection Status