चारपाई पर माँ की जमकर चुदाई की

चारपाई पर माँ की जमकर चुदाई की

जैसे जैसे मैं बड़ा हो राह था। वैसे वैसे ही सेक्स में मेरी रुचि कुछ ज्यादा ही बढ़ने लगी थी। मैं अभी अभी जवान हो रहा था। खूबसूरत औरतों और लडकियों को देखकर मेरे लंड में खलबली मच जाती थी। हमेशा उनकी मटकती चूतडे और उनकी उछलती चुचियाँ मेरा ध्यान अपनी ओर खींच ही लेती थी।

और मैं हमेशा की तरह अकेले में उन हसीन नज़ारों को याद करके अपने लंड को हिलाकर झाड़ लेता। एक दिन की बात है जब संयोग से मेरी माँ ने मेरा मोटा तगड़ा काला नंगा लंड देख लिया।

चारपाई पर माँ की जमकर चुदाई की

हमारे घर में सिर्फ दो ही लोग है हमारी फैमिली में मैं और मेरी माँ ही है। मेरा नाम विनीत है मेरी उम्र 24 साल है और मेरी माँ का नाम कविता है उनकी उम्र 48 साल हो चुकी है और हम लोग भोपाल में रहते है। ये घटना पिछले महीने की है।

मैं पहले अपनी माँ के बारे में बताता हूँ। वो एक घरेलू महिला है उनकी हाइट 5.4″ है। देखने मे वो थोड़ी साँवली और हट्टी कट्टी औरत है। और बड़ी प्यारी स्वभाव की है जैसा कि मैंने आप लोगो को पहले ही बताया है। कि मैं औरतों की और लड़कियों की गांड और चुचियों को देखकर उनकी तरफ आकर्षित हो जाता था।

माँ के शरीर की बनावट भी काफी कमाल की है। उनकी बड़ी बड़ी छातिया जो 38 D साइज की है और उनकी गांड तो देखकर किसी भी नौजवान या बूढ़े का लंड खड़ा हो जाये ऐसा था। लेकिन मुझे सामने से उनकी गांड को मटकते हुए देखने का सौभाग्य मिला था। मैं घर में हमेशा माँ की गांड को निहारता घूरता था। पहले मैं सिर्फ पराई औरतों और लड़कियों के बारे में ही गंदी सोंच रखता था। पर एक घटना ने मुझे मेरी माँ की ओर आकर्षित कर दिया।

एक दिन की बात है मुझे और मेरी माँ को शाम को एक पार्टी में जाना था। तो मैं नहा चुका था और सिर्फ टॉवल पहनकर घर में घूम रहा था। माँ भी नहा चुकी थी। और अपने कमरे में तैयार हो रही थी। फिर अचानक उन्होंने मुझे आवाज लगाई। उसके बाद मैं उनके कमरे में गया तो वो आइने के सामने पेटिकोट में खड़ी थी और अपने ब्रा को अपनी चुचियों पर लगाये हुए थी।

मेरे अंदर आते ही उन्होंने मुझे अपनी ब्रा का हुक लगाने को कहा मैं भी जाकर उनके पीछे खड़ा हो गया और उनकी ब्रा के दोनों पट्टो को खींचकर हुक को लगाने लगा। उसी वक़्त बुरे संयोग से मेरी टॉवल खुलकर गिर गयी और माँ की नज़र सामने आईने पर ही थी जिसमे उन्होंने मेरी दोनों टाँगों के बीच लटकता हुआ काला मोटा लंड देख लिया।

फिर जैसे ही मैंने अपनी टॉवल संभालने के लिए अपने हाथ बढ़ाये तो माँ की ब्रा उनके चुचियों पर से हट गई और सामने आइने में उनकी बड़ी बड़ी चुचियाँ साफ नज़रो से मुझे दिख गयी। उन्होंने अपनी ब्रा को संभालते हुए शर्मिंदगी में अपनी हल्की मुस्कान को छिपा लिया। लेकिन मुझे ऐसा लगा की उन्हें मेरे लंड को देखकर कुछ तो हुआ है। एक ही साथ हम माँ बेटे ने एक दूसरे के निजी अंगों को देख लिया था।

उसके बाद मैं उनके कमरे से निकल गया। उस दिन के बाद से मैं अपनी माँ के प्रति सेक्स की इच्छा रखने लगा। मैं वासना की नज़रो से उनके चूतड और चुचियों को देखने लगा। मैं जान बूझकर किसी न किसी बहाने से उनके करीब जाता जब वो नहाती थी। या छुपकर उनको नहाते वक्त देखता। और जब भी मुझे उनका कुछ नंगा अंग दिख जाता तो मैं उस पल को अपनी नज़रो में कैद करके अपने लंड की मुट्ठ मारता।

करीब एक साल से मैं अपनी माँ को चोदने के सपने देख रहा था।लेकिन कभी अब तक ये मौका मुझे नही मिला था। न ही मैं अपने मन की बात उनको बता सकता था। लेकिन कहते है ना देर है अंधेर नही……

अपनी माँ को चोदने का ये अनमोल पल मुझे ऐसे मिला कि 1 महीने पहले मैं और मेरी माँ मामा के घर उनके गांव गए थे। क्योंकि उनकी बेटी की शादी थी। 1 हफ़्ते में शादी निपट गयी और सब मेहमान चले गए थे। हम भी दो-तीन दिन में वापस भोपाल आने वाले थे।

तभी माँ ने मुझसे कहा कि इतनी दूर आये है तो क्यों न एक दो दिन के लिए अपने गाँव से हो आये हम काफी दिनों से अपने गाँव नही आये थे। वहाँ कोई नही रहता था। तो माँ ने कहा कि वहाँ चलकर देखना भी जरूरी है। घर कैसी हालात में है क्योंकि हमारे गाँव के घर में कोई नही रहता था। मामा के गाँव से हमारा गाँव वही कुछ 60km दूर था।

मैं भी माँ की बात से सहमत था। तो मैंने भी मामा की बाइक ली और शाम 4 बजे के करीब मामा के घर से अपने गाँव के लिए निकल पड़े रास्ता खराब था तो हमे अपने गाँव पहुंचते पहुंचते शाम के 7 बज गए हमने होटल से रात का खाना ले लिए क्योंकि बिना साफ सफाई के वहाँ खाना बनाना मुश्किल था।

हल्की हल्की ठंढ भी थी। तो जैसे तैसे हम अपने घर पहुंच गए जैसे ही हम घर के अंदर घुसे तो देखा कि हर जगह धूल मिट्टी से भरी हुई थी। वहां बैठने लायक भी जगह नही थी। और अंधेरा भी हो चुका था। माँ ने थोड़ी सी जगह साफ की और वही बैठकर हम दोनों के लिए खाना परोसा फिर खाना खा कर सोने की तैयारी में लग गए।

मैं बाइक चलाकर थक गया था मुझे नींद आ रही थी पर पलंग पर तो धूल की मोटी परत बिछी पड़ी थी सोने लायक नही थी। तभी माँ एक चारपाई लेकर आई जिसपर एक ही इंसान आराम से सो सकता था। लेकिन सोने वाले दो थे पर अब करते भी तो क्या और कोई चारा नही था।

माँ ने कहा बेटा अब दोनों को इसी पर सोना पड़ेगा। फिर माँ ने चारपाई पर एक चादर बिछाई और एक चादर ओढ़ने के लिए ले आयी। फिर मैं और माँ चारपाई पर लेट गए चारपाई इतनी पतली (चौड़ाई) थी अगर एक इंसान करवट भी बदले तो दूसरे पर चढ़ जाए

कुछ ही देर में मेरी आँख लग गयी और माँ भी चुपचाप बगल में सो गई कुछ देर बाद मेरी नींद खुल गयी क्योंकि मुझे मेरी बेल्ट चुभ रही थी और जीन्स पहनकर मैं सो नही पा रहा था। तो मैंने अपनी जीन्स निकाल दी और सिर्फ चड्डी में जाकर माँ के बगल में लेट गया और नींद आने का इंतजार करने लगा।

मैं नींद का इंतजार कर ही रह था कि तभी माँ का हाथ मेरी जांघ पर आ गया। माँ ने शायद नींद में ही अपना हाथ मेरी जांघ पर रखा था। लेकिन उनके हाथ के स्पर्श ने मेरी नियत ही हिला के रख दी। मेरे मन में फिर से चुदाई के ख्याल आने लगे।

पर मैं सीधे उनसे ऐसा कह नही सकता था। मैं भी अपना कंधा उनके चुचियों पर दबाने लगा। जिस वजह से माँ थोड़ी हिली और फिर अपना हाथ मेरी कमर पर रखकर सोने लगी। पता नही मुझे क्या हुआ मैंने अपना लंड अपनी चड्डी के बाहर निकाल लिया और बार बार लंड को उनके हाथ से सटाकर मज़े लेने लगा।

मुझे एक अजीब सा मज़ा आ रहा था। मैं बार बार अपना लंड उनके हाथ से टच करवाता और सांत लेट जाता। मैं अपने कंधे से माँ की चुचियों को भी बीच बीच में रगड़ देता। फिर अचानक से माँ जोर से हिली और उन्होंने दाहिनी करवट ली और मेरी तरफ मूडकर लेट गयी इस बार उनका बांया हाथ सीधे मेरे लंड पर आ गया।

माँ शायद अभी भी नींद में थी पर उनके हाथ के स्पर्श से मेरे लंड की हालत खराब हो रही थी। मेरा लंड लबालब लार छोड़ने लगा। और उतेजना के मारे ऊपर उठता और फिर मेरे पेट पर गिर जाता। मेरे लंड के साथ माँ का हाथ भी ऊपर नीचे हो रहा था। मैं चाह कर भी अपने मन और लंड पर कंट्रोल नही कर पा रहा था साथ ही मेरे मन में डर भी था। कि कही माँ गुस्सा न करें।

फिर मुझे मेरे लंड पर हल्की पकड़ सी महसूस हुई और डर के मारे मेरा गाला सूखने लगा डर के मारे मैं अपनी आंखें बंदकर के गहरी नींद में सोने का नाटक करने लगा। माँ मेरे लंड को टटोल रही थी जब उन्हें समझ आ गया कि उनके हाथ में क्या है तो उन्होंने झट से मेरा लंड छोड़ दिया और उठकर मेरे ऊपर से चादर हटाकर मेरे लंड को घूरने लगी।

मैं उन्हें चोरी से देख रहा था। काफी देर वो वैसे ही बैठकर मेरे लंड को देखती रही और कुछ सोचती रही फिर कुछ देर बाद वो फिर मेरे बगल में लेट गयी और उन्होंने खुदको और मुझे चादर से ढक लिया। और फिर से उन्होंने अपने बाए हाथ को मेरे लंड पर रख दिया।

माँ के ऐसा करते ही मैं उनकी मर्जी समझ गया था। पर मैं पहले पहल नही करना चाहता था। इसलिए मैं नींद में होने का नाटक करने लगा। और आगे क्या क्या करती है बस यही देखना चाहता था।

माँ ने मेरे लंड को अपनी मुठी में हल्के से कस लिया और धीरे धीरे करके मेरे लंड की चमड़ी को ऊपर नीचे खिसकाने लगी मेरे लंड से लार जैसा पानी आने लगा। जो माँ की मुट्ठी में लग रहा था और जब माँ लंड की चमड़ी को ऊपर नीचे कर रही थी तो चट… चट….. की आवाज आ रही थी।

उस आवाज से माँ घबराकर लंड की चमड़ी सरकना बंद कर देती फिर कुछ देर बाद लंड की चमड़ी को सरकाने लगती। मेरा लंड पानी पानी हो चुका था। और अब कड़क होकर अपने फूल साइज में आ चुका था अब मुझसे बर्दास्त नही हो रहा था। मैं तुरंत ही अपना लंड माँ की चुत की छेद में डालना चाहता था। पर माँ उससे आगे बढ़ ही नही रही थी। जैसे ही मैंने सोचा कि अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा।

तो माँ ने अपनी साड़ी को आगे से अपनी पेट तक उठा लिया और मेरे लंड के चिपचिपे पानी को अपनी चुत पर रगड़ने लगी। और शायद अपनी चुत में उँगली भी करने लगी। माँ मेरे बगल में लेटी हुई थी और उन्होंने अपनी साड़ी को आगे से पूरा पेट तक उठा रखा था। जिससे मुझे माँ की मोटी मोटी जाँघों और उनकी झांटो के कुछ बाल दिख रहे थे।

मैं बेसब्री से माँ की चुत में अपने लंड के घुसने का इंतज़ार कर रहा था। फिर माँ ने हल्के से अपनी बाएं जांघ को मेरी कमर पर रखा और मेरे लंड को अपने मखमली जांघ से दबाकर खेलने लगी। मेरी हालत खराब होने लगी उतेजना के मारे मेरे मुँह से आह..।।। निकलने वाला ही था कि मैंने अपनी आवाज को दबा लिया।

और चुपचाप माँ के आगे के खेल को देखने लगा फिर माँ ने अपने मुँह से ढेर सारा थूक अपने हाथ पर उगला और मेरे लंड पर मलने लगी। माँ की थूक से मेरा पूरा लंड चिकना हो गया था। फिर माँ ने अपनी उस जांघ को मेरी कमर के दूसरे तरफ किया जिससे उनकी चुत मेरे लंड के समानांतर आ गयी फिर उन्होंने मेरे लंड को अपने चुत के छेद पर लगाया

और हल्का सा अपनी कमर को लंड पर दबा दिया जिससे मेरा लंड थोड़ा सा उनकी चुत के अंदर घुस गया। उतने में ही लगा मैं स्वर्ग पहुँच गया मुझे जन्नत की खुसी मिल गयी। मैंने उतेजना के मारे अपने दोनों हाथों की मुट्ठी को कस के बंद कर लि।

लेकिन माँ को जाहिर नही होने दिया कि मैं जाग रहा हूँ। और माँ के अगले कदम का इंतजार करने लगा। फिर माँ मेरे लंड को अपनी चुत के और अंदर तक धकेलने की कोशिश कर रही थी।

वो मुझपर बिना अपने शरीर का भार दिए अपनी चुत में लंड घुसाने की कोशिश कर रही थी। जिससे उनकी चुत की पोजीशन सही नही बैठ रही थी। पर वो लगातार कोशिश कर रही थी। लेकिन बार बार थोड़ा सा लंड ही उनकी चुत में घुस कर बाहर निकल जा रहा था।

आखिर में वो काफी देर कोशिश करने के बाद वो चुपचाप मेरे बगल में लेट कर फिर से मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में लेकर भीचने लगी। और अपनी जांघो के बीच हाथ डालकर अपनी चुत में उँगली करने लगी। माँ के दोनों हाथ व्यस्त थे, मैं समझ चुका था कि माँ अब इससे ज्यादा कोशिश नही करेगी। मैं मन ही मन सोचने लगा कि अब ये सुनहरा मौका मेरे हाथ से कही निकल न जाये!!

कुछ देर तक माँ मेरे लंड से खेलती रही फिर वो अपना हाथ हटाकर मेरे बगल में दाहिनी करवट लेकर अपना चेहरा मेरी तरफ करके लेट गयी। अभी भी माँ ने अपनी साड़ी आगे से उठा रखी थी। जिससे मुझे अभी भी उनकी नंगी जाँघे साफ दिख रही थी।

मेरा लंड अब भी टाइट था तो मैंने सही मौका देखकर अपनी बांयी करवट बदली जिससे मेरा लंड सीधा माँ के पेट के नीचे से उनकी दोनों जाँघों के बीच घुस गया। मुझे मेरे लंड पर माँ के चुत के बाहरी होंठ की धारिया महसूस हो रही थी।

लेकिन अब भी मेरा लंड माँ की चुत की छेद से दूर था। तो मैंने नींद में होने का नाटक करते हुए अपना पेट माँ के पेट से सटाने लगा जिससे मेरा लंड माँ के जांघो के बीच से उनकी चुत के होठों को दो भागों में करता हुआ उनकी चुत की छेद पर जाकर अड़ गया।

मैं जान बूझकर वहां रुक गया मैं माँ को मौका दे रहा था। माँ थोड़ी देर खामोश रही जब मैंने देर तक कोई हरकत नही की तब माँ ने अपनी एक जांघ को थोड़ा ऊपर उठाया और जैसे ही मेरे लंड को थोड़ा रास्ता मिला मैंने अपना पेट पूरा माँ के पेट से चिपका दिया जिससे घप से मेरा साबुत लंड उनकी चुत में पिल गया।

उनकी चुत पहले से ही गीली थी, जिस वजह से मेरा पूरा लंड आसानी से उनकी चुत में समा गया। मैं वैसे ही उनकी चुत में लंड डाले रुका रहा और माँ भी कोई हरकत नही कर रही थी। लेकिन उनकी भट्ठी जैसे दहकती चुत में मैं अपना लंड डाले ज्यादा देर काबू में नही रख पाया मेरे लंड ने माँ की चुत में ही उल्टी कर दी।

काफी देर से मेरा लंड माँ की चुत चोदने के लिए तड़प रहा था। जिससे लंड से ढेर सारा माल बारी बारी से तेज फुहारों के रूप में उनकी चुत में गिर रहा था। जब मेरे लौड़े का गरम लावा माँ की चुत में गिर रहा था। तो माँ के बदन में एक अजीब से सिहरन उठ रही थी।

मैंने अभी तक तो अच्छे से माँ की चुत भी नही मारी थी और अब मैं इस मौके को हाथ से नही जाने देना चाहता था। मैंने सोचा लिया कि अब सारी बेशर्मी की हदें तोड़कर आज मैं अपनी माँ की चुत मारूंगा।

पहले से ही मेरा लंड माँ की चुत में था ही मैंने अपने शरीर के वजन से माँ को पलट दिया और माँ के ऊपर चढ़ गया। मुझे जागा देखकर एक बार माँ भी चौक गयी। पर वो कुछ बोलती इससे पहले मैंने अपना लंड सीधा किया और उनकी चुत में उतार दिया।

और उनकी चुत में लंड घुसाए अपनी कमर उछाल उछाल कर माँ की चुत मारने लगा। दनादन 8 -10 धक्के उनकी चुत में पेल दिए पर माँ ने कुछ कहा नही और मैं पूरा जोर लगाकर अपना मोटा लौड़ा माँ की चुत में पूरी रफ्तार में घुसा रहा था। माँ उफ्फ…उफ्फ… महः… मह…. करके मेरी कमर को पकड़े अपनी चुत फड़वा रही थी।

फिर मैंने उनको चोदते चोदते उनकी ब्लाउज को खोलकर उनकी चुचियों को मिसने लगा माँ आंनद से आआ…आ….आआ… ऊंह… करने लगी। मैंने उनकी चुचियों को पीने लगा और उनके निप्पल्स को अपनी जबान से चाटने लगा।

उनकी चुचियों को पीने पर वो इतनी गरम हो गयी कि बीच चुदाई में ही वो झड़ गयी। और फिर मैंने अपना लंड उनकी चुत से बाहर निकाल लिया। फिर से उनकी दोनों चुचियों को किसी भूखे बच्चें की तरह चूसने लगा। इतनी देर में मेरा लंड फिर से कड़क हो गया।

माँ भी दुबारा गरम हो गयी थी। अब मैं फिर से उनकी चुत को चोदने वाला था। माँ भी समझ चुकी थी तो उन्होंने अपनी दोनों टाँगों को फैलाकर बीच में जगह बनाई। मैंने अपना लंड उनकी चुत की छेद पर टिकाया और एक ज़ोर का धक्का मारा जिससे मेरा पूरा का पूरा लंड माँ की चुत के अंदर समा गया।

और मैं अब उनके ऊपर लेटकर अपनी कमर को उनकी चुत पर पटक कर उनकी चुत में अपना लंड चोदने लगा। सारी रात ऐसे ही मैंने चारपाई पर माँ की जमकर चुदाई की एक बार माँ ने भी मुझपर चढ़कर मेरे लंड को अपनी चुत में डालकर अपनी चुत की आग सांत की सुबह के 6 बजे तक मैंने अपनी माँ को पता नही कितनी बार चोदा लेकिन कभी भी माँ ने मुझे रोका नही।

अब हम भोपाल आ चुके है। लेकिन उस दिन के बाद से हमारे बीच कभी सेक्स नही हुआ हालांकि मेरा तो मन करता है। लेकिन मैं खुलकर माँ से अपने मन की बात कहने से डरता हूँ। और शायद माँ भी ऐसा ही कुछ महसूस करती होंगी। इसलिए अब हमारे बीच बात चीत भी कम होती है।

लेकिन दोस्तों अब माँ की चुत पर बस मेरा हक है और मैं कोई न कोई तरकीब लगाकर माँ की चुदाई दुबारा जरूर करूँगा। यहाँ बस हम दोनों ही है। अगर मैं अपनी माँ को फिर से चोद पाया तो मैं आप सभी को अगली कहानी में बताऊँगा।

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