मेरा नाम नितिन है, मेरी उम्र 24 साल की है। मैं और मेरा परिवार यानि मम्मी, पापा और मैं झारखंड में रहते है। वैसे हमारा पुश्तैनी मकान/घर बिहार में है।

जहां मेरे परिवार के बाकी के लोग रहते है। यानि मेरे बड़े पापा का परिवार जिसमें उनके बच्चे और मेरी बड़ी माँ है। मेरी बड़ी माँ की उम्र लगभग 50 साल के आस पास की होगी। वो दिखने में गोरी चिट्ठी और उनका कद 5.5 फुट के आस पास का होगा। वो सामान्य दिखने वाली औरतों जैसी ही लगती हैं। बड़ी माँ के चेहरे पर थोड़ी झुरिया आ चुकी थी।
मैंने उस रात से पहले कभी भी अपनी बड़ी माँ के बारे में कुछ गलत नही सोचा था। बड़ी माँ हमेशा साड़ी पहना करती है। जिससे उनका गोरा पेट बाहर झांकता रहता है। सच बताऊं तो उस रात उनके गोरे पेट और उनकी गहरी सुर्ख नाभि को देखकर ही मेरी नियत बिगड़ी और मैंने आगे उनके साथ वो सब करने का मन बना लिया।
बात उस वक्त की है जब मैं गांव से लौटकर झारखंड आने वाला था। तो मेरी मम्मी ने जिद की की मैं इस बार बड़ी माँ को भी अपने साथ ले आऊं। बड़ी आग्रह करने के बाद बड़ी माँ मेरे साथ आने को राजी हुई।
अगले दिन मैंने और बड़ी माँ ने बस पकड़ ली मैंने AC बस की टिकट बुक की थी। ताकि बड़ी माँ को कोई तकलीफ न हो। शाम को 5 बजे हम बस में बैठ गए और सफर शुरू हो गया। कुछ ही देरी में बड़ी माँ पर सफर का असर होने लगा। बड़ी माँ को उल्टी आने लगी उन्हे बस में सफर करने की आदत नही थी।
बड़ी माँ की हालत बिगड़ चुकी थी। जैसे तैसे सफर कट रहा था। रात के करीब 8 बज चुके थे। तभी बड़ी माँ ने मुझसे अपनी बैंग मांगी और उसमें से नींद की गोली निकाली और एक साथ दो गोलियों को अपनी हथेली पर रख लिया। बड़ी माँ को नींद की गोली खाने की आदत थी। बिना नींद की गोली के उन्हें नींद नही आती थी।
उनकी हथेली पर दो गोलियों को देखकर मैंने उन्हें टोका मैंने कहा बड़ी माँ दो गोलियां क्यों खा रही हो आप? तो वो बोली इस बस के सफर में एक गोली से कुछ नही होगा। बार बार उलटी आती रहेगी इससे अच्छा है की दो गोलियां लेकर आराम से चैन की नींद सो जाऊं।
नींद की गोलियां खाने के बाद बड़ी माँ अपनी दोनो टांगें सीट पर चढ़ाकर कुछ देर तो चूपचाप सीट पर बैठी रही। लेकिन कुछ देर बाद उनकी पलके भारी होने लगी। बड़ी माँ कभी खिड़की की तरफ झूलती तो कभी मेरे कंधे पर अपना सर टिकाती जिससे मुझे भी अजीब लग रहा था।
AC बस थी इसलिए सभी सीटों के आगे पीछे पार्टीशन थी और साइड में पर्दे लगे हुए थे। जिससे अच्छी खासी प्राइवेसी थी। अब भी बड़ी माँ कभी मेरे कंधे तो कभी बस के खिड़की की तरफ झूल रही थी। कुछ देर मैं वैसे ही झेलता रहा कुछ देर बाद बड़ी माँ फिर से बस की खिड़की साइड झूल गई।
मेरे कंधे से उनका बोझ हटने के बाद मैं भी अब आराम से बैठ गया। लेकिन तभी बस खराब रास्ते से घुजराने लगी। जिससे हमें झटके लग रहे थे। तभी बड़ी माँ फिर से मेरी तरफ झुक गई उनका सर मेरे कंधे पर आ गया।
लेकिन इस बार मैंने उनको अपने उपर से हटाने की कोशिश नही की क्योंकि अब जो मुझे नजारा दिख रहा था। उससे मेरी नियत बिगड़ने लगी। बड़ी माँ के सीने पर से उनका पल्लू पूरा उतर चुका था। जिससे मेरी नजर उनके छाती पर पड़ी मैं बड़ी माँ की चुचियों का आकार देखकर सकपका सा गया।
बड़ी माँ ने लाल गहरे गले वाली ब्लाउज पहनी हुई थी। जिससे उनकी आधी चूचियां दिखाई दे रही थी। वो अभी भी मेरे कंधे पर अपना सर रखकर सो रही थी। मैं अपनी नज़रे नीचे गड़ाए उनकी चुचियों को ही निहार रहा था। उनके दोनों चूचियों के बीच की खाई पूरी अंदर तक दिखाई दे रही थी।
जब मैंने और गौर से देखा तो पता चला की उन्होंने ब्रा नही डाली थी उन्होंने सिर्फ ब्लाउज पहनी हुई थी। बड़ी माँ को ऐसे देखकर मेरे बदन में आग सी लग गई मेरे होठ सूखने लगे। मन कर रहा था की अभी लपककर उनकी दोनों चूचियों को पकड़ लू।
लेकिन मुझे डर भी लग रहा था वो मेरी बड़ी माँ थी। पर मेरा डर मुझपर ज्यादा देर हावी नहीं रह सका। मैंने एक तरकीब सोंची जब भी बस खराब रास्ते से गुजरती तो मैं जान बूझकर अपनी एक उंगली से बड़ी माँ की चुचियों को दबा देता और चेक करता की बड़ी माँ जाग तो नही रही है।
मैं जानता था की उन्होंने नींद की दो गोलियां खाई है लेकिन फिर भी मैं ये पक्का करना चाहता था की बड़ी माँ गहरी नींद में हो। मैंने ऐसा कई बार किया लेकिन किसी भी बार बड़ी माँ ने कोई हरकत नहीं की।
तब जाकर मेरी हिम्मत बढ़ी तो मैंने धीरे से अपना एक हाथ बड़ी माँ के सीने पर रखा और धीरे से अपना हाथ उनकी ब्लाउज के अंदर डाल दिया। मैंने उनकी ब्लाउज में हाथ डालकर कुछ देर इंतजार किया जब लगा सब ठीक है। तो मैंने अपना हाथ उनकी ब्लाउज के और अंदर डाल दिया।
ब्लाउज में हाथ घुसते ही मेरा हाथ उनकी नरम नरम चूचियों को छुने लगा। ऐसा लग रहा था की मेरा हाथ किसी दो नरम नरम रुई के गोलों पर है। फिर मैं अपना हाथ उनकी ब्लाउज के अंदर अपना हाथ बारी बारी से उनकी दोनों चूचियों पर फेरने लगा और उनकी बड़ी बड़ी चुचियों के दोनों गोलों को सहलाने लगा।
मेरी उंगलियां उनके निप्पलों से रगड़ खा रही थी। उनकी चुचियों को छुने से ही मेरा लंड खड़ा हो चुका था। फिर मेरा मन उनकी चुचियों से खेलकर ऊब गया। अब मेरा ध्यान बड़ी माँ की टांगों पर गया जो उन्होंने सीट पर चढ़ा रखी थी।
फिर मेरे मन में आया की अगर बड़ी माँ की चूत देखने को मिल जाए तो मजा आ जायेगा। पर हम अभी बस में थे तो ज्यादा कुछ नहीं कर सकता था।
तभी एक आइडिया मेरे दिमाग में आया मैंने तुंरत अपना हाथ बड़ी माँ के ब्लाउज से निकाला और उन्हे उनके कंधों से पकड़ा और धीरे से उन्हें बस की खिड़की से उनकी पीठ सटाकर बैठा दिया और उनके दोनों टांगों को सीट पर ही अपनी तरफ कर दिया।
अब बड़ी माँ बस की खिड़की की तरफ अपनी पीठ सटाए खिड़की पर अपना सर रखे अपनी टांगें मेरी तरफ किए चैन की नींद से सोई हुई थी। मैंने कुछ देर इंतेजार किया फिर मैंने धीरे से बड़ी माँ की दोनो टांगों को फैला दिया।
फिर मैं उनकी दोनों टांगों के बीच से अपना हाथ उनकी साड़ी में धीरे धीरे घुसाने लगा। हड़बड़ाहट में मेरा गला सूखने लगा था। मेरे हाथों में कम्पन होने लगा। पर मैंने खुदको समझाया और हिम्मत करके बड़ी माँ की साड़ी के अंदर हाथ घुसाने लगा।
कुछ ही देरी में मेरा हाथ उनकी चूत के पास पहुंच गया। फिर मैंने अपनी एक उंगली उनकी चूत की तरफ बढ़ाई। मेरी उंगली उनकी चूत के धारी के बीच को छुने लगी। फिर मैं अपनी उंगली को उनकी चूत के धारी से धीरे धीरे नीचे उतारने लगा।
थोड़ा नीचे करते ही बड़ी माँ की चुत की छेद मिल गई। जब मैंने आहिस्ते से अपनी ऊंगली को उनकी चूत की छेद पर दबाया तो मेरी उंगली आराम से उनकी चूत में एक इंच तक घुस गई।
अब मैंने उनकी चूत देखने के लिए धीरे धीरे उनकी साड़ी को उठाकर उनके घुटनों तक कर दी। जिससे मुझे बड़ी माँ की चुत और उनकी चूत में घुसी हुई मेरी उंगली दिखने लगी। बड़ी माँ की चुत पर ढेर सारे घुंघराले झांटे उगी हुई थी। जिसके बीच से होती हुई मेरी उंगली उनकी चूत में घुसी हुई थी।
बड़ी माँ की चुत देखकर मेरे बदन में जैसे आग लग गई हो, मेरे हाथ कांप रहे थे, होठ चबाने का मन कर रहा था, गला सुख रहा था, बड़ी माँ की चूत की गरमाहट मेरी उंगली पर पड़ रही थी, जिससे मेरे लंड का पानी मेरी पैंट में ही छुट गया।
फिर मैंने अपनी उंगली को उनकी चूत में दबाया और देखते ही देखते मैंने अपनी बड़ी माँ की चुत में उंगली डाली अब मेरी पूरी ऊंगली उनकी चुत में समा चुकी थी। मैंने कुछ देर इंतेजार किया फिर मैं अपनी उंगली को बड़ी माँ की चुत के अंदर बाहर करने लगा।
मुझे बहुत मजा आ रहा था। मेरी एक उंगली बड़े आराम से उनकी चुत के अंदर बाहर हो रही थी। काफी देर तक मैं अपनी एक ऊंगली से उनकी चुत को चोदता रहा। फिर मैंने अपनी दो उंगलियों को एक साथ उनकी चुत में डालना चाहा तो उनके बैठे होने के कारण उनकी चुत सही से खुल नही रही थी।
मैंने सोचा की थूक लगाकर दो उंगलियों को एक साथ उनकी चुत में डालूंगा। लेकिन मेरा गला तो पहले से ही सुख चुका था। मैंने थूक निकालने की कोशिश को पर मेरे गले से थूक नही निकला।
इधर मेरा लंड फिर से तनकर खड़ा हो गया था। और बड़ी माँ की चुत में घुसने को बेताब था। लेकिन मैं ये चाहकर भी नही कर सकता था क्योंकि अभी हम बस में थे। तभी मेरे मन में एक ख्याल आया की अभी मेरा लंड बड़ी माँ की चुत में नही घुस सकता लेकिन मेरे लंड का बीज तो उनकी चुत में जा सकता है!!
तो मैंने बड़ी माँ की चुत से अपनी ऊंगली निकाली और अपनी पैंट की चैन खोलकर अपना लंड बाहर निकाला और बड़ी माँ की चुत देखकर अपना लंड हिलाने लगा। करीब 5 मिनट हिलाने के बाद मेरा लंड झडने को आ गया।
मैंने अपने लंड का सारा माल अपने हथेली पर निकालकर जमा किया और अपने लंड के सारे बीज(वीर्य) को अपनी दो उंगलियों पर अच्छे से लपेट लिया। फिर मैंने उन उंगलियों को बड़ी माँ की चुत की छेद पर लगाया।
पहले मैंने एक ऊंगली को उनकी चुत के अंदर ठेला उंगली पर वीर्य लिपटे होने के कारण सट से एक उंगली उनकी चुत में घुस गई। फिर मैंने अपनी एक उंगली से उनकी चुत की छेद को थोड़ा फैलाया और अपनी दूसरी उंगली भी उनकी चुत में डाल दी।
अब मेरी दोनों उंगलियां उनकी चुत में समा गई अब मैं धीरे धीरे करके अपनी दोनों उंगलियों को उनकी चुत में हिलाने लगा। अब मेरी दो उंगलियां बड़ी माँ की चुत के अंदर बाहर होकर उनकी चुत को चोद रही थी।
मैंने अब बाकी का माल भी अपनी उंगलियों में अच्छे से लपेटा और बड़ी माँ की चुत के अंदर अपनी उंगलियों समेत ठूंस दिया। मैं काफी देर तक रुक रुककर बड़ी माँ की चुत को अपनी उंगलियों से चोदता रहा आखिर में फिर से मेरे लंड ने मेरी पैंट में ही फुहार मार दी।
उसके बाद मैं भी शांत पड़ने लगा अब मैं बड़ी माँ की चुत को उंगलियों से चोद चोदकर ऊब गया था। मैं तो बड़ी माँ की चूत को अपने लंड से चोदना चाहता था। पर हम बस में थे इसलिए मैं ज्यादा कुछ कर नही पाया।
मैंने उस यादगार पल को अपने मन में बसा लिया और अपनी बड़ी माँ के वीर्य से लथपत चुत की अपने फ़ोन से फ़ोटो खींच ली। उसके बाद मैं सो गया। सुबह जब हम उठे तो हम झारखंड पहुंच चुके थे। अब भी बड़ी माँ हमारे साथ ही है। उन्हें नींद की गोली खाने की आदत है।
मुझे पता है की आज या कल मुझे उनको चोदने के कई मौके मिलेंगे अगर मैं अपनी बड़ी माँ को चोद पाया तो अगली कहानी में जरूर बताऊंगा। अभी भी मेरे मन में बड़ी माँ की चुत को अपने लंड से चोदने की लालसा है।
उम्मीद है दोस्तों आप सभी को मेरी ये छोटी सी कहानी पसंद आई होगी। आगे की कहानी मेरी किस्मत और आप सभी रुचि पर आएगी।
“धन्यवाद”